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________________ 麻糕糕糕糕蛋糕糕糕糕糕糕糕糕糕 आचार्य कुन्दकुन्द अष्ट पाहुड़ स्वामी विरचित ५. पांचव ‘आकाशगता' चूलिका है उसमें आकाश में गमनादि के कारणभूत मंत्र, यंत्र और तंत्रादि का प्ररूपण है । ऐसे बारहवां अंग है । इस प्रकार तो बारह अंग रूप सूत्र है । अंगबाह्य श्रुत के ये चौदह प्रकीर्णक हैं : (१) प्रथम ‘सामायिक' प्रकीर्णक है उसमें नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के भेद से छह प्रकार सामायिक इत्यादि का विशेषता से वर्णन है । (२) दूसरा 'चतुर्विंशतिस्तव' नामक प्रकीर्णक है उसमें चौबीस तीर्थंकरों की महिमा का वर्णन है । (३) तीसरा 'वंदना' नामक प्रकीर्णक है उसमें एक तीर्थंकर के आश्रय वंदना और स्तुति का वर्णन है । (४) चौथा 'प्रतिक्रमण' नामक प्रकीर्णक है उसमें सात प्रकार के प्रतिक्रमण का वर्णन है । (५) पांचवां ‘वैनयिक' नामक प्रकीर्णक है उसमें पाँच प्रकार की विनय का प्ररूपण है । (६) छठा 'क तिकर्म' नामक प्रकीर्णक है उसमें अरहंत आदि की वंदना की क्रिया का वर्णन है। (७) सातवां ‘दशवैकालिक' नामक प्रकीर्णक है उसमें मुनि के आचार और आहार की शुद्धता आदि का वर्णन है । (८) आठवां 'उत्तराध्ययन' नामक प्रकीर्णक है उसमें परीषह और उपसर्ग को सहने के विधान का वर्णन है। (६) नौवां ‘कल्पव्यवहार' नामक प्रकीर्णक है इसमें मुनियों के योग्य आचरण और अयोग्य सेवन के प्रायश्चितों का वर्णन है । (१०) दसवां ‘कल्पाकल्प' नामक प्रकीर्णक है उसमें मुनि को यह योग्य है और यह अयोग्य है-ऐसा द्रव्य, क्षेत्र, काल एवं भाव की अपेक्षा वर्णन है। (११) ग्यारहवां ‘महाकल्प' नामक प्रकीर्णक है उसमें जिनकल्पी मुनियों के प्रतिमायोग और त्रिकालयोग का प्ररूपण है तथा स्थविरकल्पी मुनियों की प्रवत्ति का वर्णन है। (१२) बारहवां 'पुंडरीक' नामक प्रकीर्णक है उसमें चार प्रकार के देवों में उत्पन्न २-१३ 專業卐業 業 C 糝糕糕糕糕糕業業業業業業
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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