SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अष्ट पाहुड़storate स्वामी विरचितK आचार्य कुन्दकुन्द MANANAMA FDoo Dool Dool ADOO FDoo 藥業兼崇明崇明藥業業業業乐業%崇崇崇崇%崇崇崇 सुत्तम्मि जं सुदिटुं आयरियपरंपरेण मग्गेण । णाऊण दुविह सुत्तं वट्टइ सिवमग्ग जो भव्वो।। २।। सूकथित सूत्र में जो उसे, सूरि परम्पर मार्ग से। जो द्विविध सूत्र को जानकर, शिवमग में वर्ते भव्य वह ।।२।। अर्थ सर्वज्ञ भाषित सूत्र में जो कुछ भली प्रकार से कहा गया है उन दो प्रकार के सूत्रों को आचार्यों की परम्परा रूप मार्ग से, शब्द से और अर्थ से जानकर जो मोक्षमार्ग में प्रवर्तता है वह भव्य जीव है और मोक्ष पाने योग्य है। भावार्थ यहाँ कोई कहता है कि 'अरहंत के द्वारा भाषित और गणधरों से गूंथा हुआ सूत्र | तो द्वादशांग रूप है वह तो इस काल में दीखता नहीं तब परमार्थ रूप मोक्षमार्ग कैसे सधे ?' उसके समाधान को यह गाथा है कि 'अरहंत भाषित और गणधर ग्रंथित सूत्र में जो उपदेश है वह आचार्यों की परम्परा से जाना जाता है, उसको शब्द और अर्थ से जानकर जो मोक्षमार्ग को साधता है वह मोक्ष प्राप्त होने योग्य भव्य है। यहाँ फिर कोई पूछता है कि 'वह आचार्यों की परम्परा क्या है।' सो अन्य ग्रंथों में जो आचार्यों की परम्परा कही है सो ऐसे है-श्री वर्द्धमान तीर्थकर सर्वज्ञ देव के पीछे ये तीन तो केवलज्ञानी हुए-१.गौतम, २.सुधर्म और ३.जम्बू । उनके पीछे ये पाँच श्रुतकेवली हुए जिनको द्वादशांग सूत्र का ज्ञान हुआ१.विष्णु, २.नन्दिमित्र, ३.अपराजित, ४.गोवर्धन एवं ५.भद्रबाहु। उनके पीछे दस पूर्वो के पाठी ये ग्यारह हुए-१.विशाख, २.प्रौष्ठिल, ३.क्षत्रिय, ४.जयसेन, ५.नागसेन, ६.सिद्धार्थ, ७.ध तिषेण, ८.विजय, ६.बुद्धिल, १०.गांगदेव और ११.धर्मसेन । उनके पीछे ये पांच ग्यारह अंग के धारक हुए-१.नक्षत्र, २.जयपाल, ३.पांडु, ४.ध्रुवसेन एवं ५.कस। उनके पीछे एक अंग के धारक ये चार हुए१.सुभद्र, २.यशोभद्र, ३.भद्रबाहु एवं ४.लोहाचार्य । इनके पीछे अंग के पूर्ण ज्ञान की तो व्युच्छित्ति हुई और अंगों के एकदेश अर्थ 崇养崇崇崇崇崇崇崇崇勇攀藤勇攀事業樂業禁帶男 業崇崇崇崇寨寨禁禁禁禁禁
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy