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________________ आचार्य कुन्दकुन्द ● अष्ट पाहुड़ सवैया तेईसा मोक्ष उपाय कह्यो जिनराज जु, सम्यग्दर्शन ज्ञान चरित्रा । ता मधि सम्यग्दर्शन मुख्य, भये निज बोध फलै सुचरित्रा ।। जे नर आगम जांनि सुमांनि, करै पहचानि यथावत मित्रा। घाति क्षपाय रु केवल पाय, अघाति हने लहि मोक्ष पवित्रा ।।१।। Mea स्वामी विरचित अर्थ जिनराज ने सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्र को मोक्ष का उपाय कहा है, उनमें सम्यग्दर्शन मुख्य है जिसके होने पर निज का ज्ञान होकर सम्यक् चारित्र फलित होता है। हे मित्रों! जो नर आगम को जानकर और उसे भली प्रकार मानकर सम्यग्दर्शन की यथावत् पहचान कर लेते हैं वे घातिया कर्मों का नाश कर केवलज्ञान को प्राप्त करके फिर अघातिया कर्मों का भी हनन कर पवित्र मोक्ष को प्राप्त कर लेते हैं। दोहा नमूं देव गुरु धर्म कूं, जिन आगम कूं मांनि । जा परसाद लयो अमल, सम्यक् दर्शन जांनि ।।२।। अर्थ जिन आगम का श्रद्धान करके देव-गुरु-धर्म को नमन करता हूँ जिनके प्रसाद से मैंने निर्मल सम्यग्दर्शन - ज्ञान को प्राप्त किया है । । २ । । फ्र 【卐卐業業卐業 १-५१ Ú米業業業業 卐業卐糕卐卐
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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