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________________ पाहुड़ अष्ट पाहड Pre-EVE rotato स्वामी विरचित ..... आचार्य कुन्दकुन्द 1000 HPUR Troo JOOK 04 Dool. 100 lood (bone अनुरक्त है-अनुराग सहित होता है सो ही मुनि ध्यान में प्रीतिवान होता है और मुनि होकर भी यदि देव, गुरु तथा साधर्मियों में भक्ति एवं अनुराग सहित न हो तो उसको ध्यान में रुचिवान नहीं कहते क्योंकि जो ध्यानी होता है उसको ध्यान वालों से रुचि एवं प्रीति होती है, ध्यान वाले न रुचें तब ज्ञात होता है कि इसको ध्यान भी नहीं रुचता है-ऐसा जानना।।५२।। 听听器呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢 आगे कहते हैं कि 'ध्यान सम्यग्ज्ञानी के होता है और वह ही तप से कर्मों का क्षय करता है :उग्गतवेणण्णाणी जं कम्मं खवदि भवहिं बहुएहिं। तं णाणी तिहिं गुत्तो खवेइ अंतोमहुत्तेण।। ५३।। जिस कर्म को तप उग्र से, अज्ञानी भव बहु क्षय करे। त्रय गुप्ति से ज्ञानी मुहूरत, मध्य में नाशे उसे ।। ५३।। 柴柴先崇崇崇崇崇乐業業先崇崇勇禁藥業樂業業崇勇 अर्थ अज्ञानी है सो 'उग्र' अर्थात् तीव्र जो तप उसके द्वारा बहुत भवों में जितने कर्मों का क्षय करता है उतने कर्मों का ज्ञानी मुनि तीन गुप्तियों से युक्त हुआ अन्तर्मुहूर्त में क्षय कर देता है। भावार्थ जो ज्ञान की सामर्थ्य है वह तीव्र तप की भी सामर्थ्य नहीं है क्योंकि ऐसा वस्तुस्वरूप है कि अज्ञानी अनेक कष्टों को सहकर तीव्र तप को करता हुआ करोड़ों भवों में जितने कर्मों का क्षय करता है उनका आत्मभावना सहित ज्ञानी मुनि अन्तर्मुहूर्त में क्षय कर देता है-यह ज्ञान की सामर्थ्य है।।५३।। 兼業助業崇明藥業業、崇崇崇崇崇崇明
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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