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________________ 卐業卐業卐卐業卐業卐業業卐業業卐 आचार्य कुन्दकुन्द ● अष्ट पाहुड़ Mea स्वामी विरचित अर्थ छह द्रव्य, नौ पदार्थ, पांच अस्तिकाय और सात तत्त्व-ये जो जिनवचन में कहे गए हैं उनके स्वरूप का जो श्रद्धान करता है उसे सम्यग्द ष्टि जानना। भावार्थ जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल-ये तो छह द्रव्य हैं; जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा, मोक्ष, पुण्य और पाप-ये नौ पदार्थ हैं; काल बिना छह द्रव्य पंचास्तिकाय हैं तथा पुण्य-पाप बिना नौ पदार्थ सात तत्त्व हैं। इनका संक्षिप्त स्वरूप ऐसा है- जीव तो चेतनास्वरूप है सो दर्शनज्ञानमयी है, पुद्गल स्पर्श रस गंध वर्ण गुणमयी मूर्तिक है जिसके परमाणु और स्कंध - ऐसे दो भेद हैं, उसमें स्कंध के भेद शब्द, बंध, सूक्ष्म, स्थूल, संस्थान, भेद, तम, छाया, आतप और उद्योत इत्यादि अनेक प्रकार हैं और धर्म द्रव्य जीव और पुद्गल को गमन में सहकारी है, अधर्म द्रव्य जीव और पुद्गल को स्थित होने में सहकारी है, आकाश द्रव्य अवगाहना गुणस्वरूप है तथा काल द्रव्य वर्तना में निमित्त है। जीव अनंत हैं, पुद्गल उनसे अनंतगुणे हैं, धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य और आकाशद्रव्य एक-एक हैं तथा कालाणु असंख्यात द्रव्य हैं। पांच द्रव्यों के बहुप्रदेशी होने से पांच अस्तिकाय हैं और कालद्रव्य बहुप्रदेशी नहीं है इसलिए अस्तिकाय नहीं है इत्यादि–इनका स्वरूप तत्त्वार्थसूत्र से जानना । एक तो जीव पदार्थ और अजीव पदार्थ पांच द्रव्य तथा जीव के पुद्गल कर्म बंध योग्य हों सो आस्रव, कर्मों का बंधना सो बंध, आस्रव का रूकना सो संवर, कर्म बंध का झड़ना सो निर्जरा, सम्पूर्ण कर्मों का नाश होना सो मोक्ष, जीव को सुख का निमित्त सो पुण्य और दुःख का निमित्त सो पाप - ऐसे सात तत्त्व और नौ पदार्थ हैं इनका आगम के अनुसार स्वरूप जानकर जो श्रद्धान करता है वह सम्यग्द ष्टि होता है ।। १६ ।। उत्थानिका आगे व्यवहार, निश्चय सम्यक्त्व को कहते हैं : जीवादी सद्दहणं सम्मत्तं जिणवरेहिं ववहारा णिच्छयदो अप्पाणं हवइ १-३५ 卐卐糕糕糕糕卐湯 【卐糕 पण्णत्तं । सम्मत्तं ।। २० ।। 糕 業業業業
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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