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________________ अष्ट पाहुड़ . .at स्वामी विरचित Westerest आचार्य कुन्दकुन्द ह ADOG) PeCl lood Do/ Dog/ Door Dod •load उसकी सूचना इस प्रकार है-'जो मस्तक के, डाढी के और मंछ के केशों का तो लोंच करना-तीन चिन्ह तो ये और चौथा-नीचे के केश रखना। 'इस प्रकार सब बाह्य वस्त्रादि से रहित नग्न रहना-ऐसा नग्न रूप भावविशुद्धि के बिना हँसी का स्थान है और कुछ उत्तम फल भी नहीं है।।१११।। उत्थानिका 帶幾步骤步骤步骤業業樂業業助兼業助業兼藥%崇崇勇崇崇 आगे कहते हैं कि 'भाव बिगड़ने की कारण चार संज्ञा हैं उनसे संसार भ्रमण होता है-यह दिखाते हैं' :आहारभयपरिग्गहमेहुणसण्णाहिं मोहिओसि तुमं। भमिओ संसारवणे अणाइकालं अणप्पवसो।। ११२।। आहार, भय, परिग्रह, मिथुन संज्ञा से मोहित हो के तू। संसार वन में भ्रमा काल, अनादि से हो अन्यवश ।।११२ ।। अर्थ हे मुनि ! तू आहार, भय, मैथुन और परिग्रह-ये जो चार संज्ञा इनसे मोहित हुआ | अनादि काल से लगाकर पराधीन होता हुआ संसार रूपी वन में भ्रमा। भावार्थ संज्ञा नाम वांछा के बने रहने का है सो आहार की ओर, भय की ओर, मैथुन की ओर और परिग्रह की ओर प्राणी के निरन्तर वांछा जाग्रत रहती है, यह जन्मान्तर में चली जाती है, जन्म लेते ही तत्काल उघड़ती है और इसी के निमित्त से कर्मों का बंध करके जीव संसार में भ्रमण करता है इसलिए मुनियों को यह उपदेश हे कि 'अब इन संज्ञाओं का अभाव करो' ||११२।। 先养养樂業禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁 टि0-1. मूल प्रति' के सिवाय अन्य हस्तलिखित प्रतियों' में एवं मु० प्रति' में एक यह पंक्ति और मिलती है-'अथवा वस्का त्याग, केनिका लौंच करना, रीरका स्नानादिक करि संस्कार न करना, प्रतिलेखन मयूरपिच्छका राखना-ऐसे भी च्यार प्रकार बाह्य लिंग कह्या है।' | 崇明崇崇崇崇明戀戀戀禁禁禁禁禁業
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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