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________________ 卐糕糕蛋糕糕糕卐業卐業業 आचार्य कुन्दकुन्द * अष्ट पाहड़ स्वामी विरचित अर्थ हे महायश ! पूर्वोक्त गर्भवास से निकलके अन्य - अन्य जन्मों में भिन्न-भिन्न माताओं के स्तनों का दूध तूने समुद्र के जल से भी अतिशय कर अधिक पिया । भावार्थ जन्मों-जन्मों में अन्य - अन्य माताओं के स्तनों का दूध इतना पिया कि उसको यदि एकत्रित करें तो समुद्र के जल से भी अतिशय कर अधिक हो जाए। यहाँ अतिशय का अर्थ अनन्तगुणा जानना क्योंकि अनन्त काल का एकत्रित किया हुआ अनंतगुणा हो जाएगा || १८ || उत्थानिका आगे फिर कहते हैं कि 'जब जन्म लेकर मरण किया तब माताओं के रुदन के अश्रुपात का जल भी इतना हुआ' : तुह मरणे दुक्खेणं अण्णण्णाणं अणेयजणणीणं । रुण्णाण णयणणीरं सायरसलिलादु अहिययरं ।। ११।। तेरे मरण से दुःखित जननी, अनेक अन्य के अन्य के । रोने से नैनों का नीर जो, सागर के जल से अधिक वो । । १9 ।। अर्थ हे मुने! तूने माता के गर्भ में बसकर जन्म लेकर मरण किया सो तेरे मरण से अन्य-अन्य जन्मों में अन्य - अन्य माताओं के नयनों के रुदन का नीर एकत्रित करें तो समुद्र के जल से भी अतिशय करके अधिक गुणा अर्थात् अनंत गुणा हो जाए । 199 ।। उत्थानिका आगे फिर कहते हैं कि 'संसार में जो तूने जन्म लिये उनमें जितने केश, नख एवं नाल कटे उनको यदि एकत्रित करें तो मेरु से भी अधिक राशि हो जाए' : ५-३१ 卐卐卐 卐業 添黹縢糕糕糕糕糕糕黹糕糕
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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