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________________ अष्ट पाहुड़ta पाहड़M alirates स्वामी विरचित MASTANT आचाय कुन्दकुन्द 090 To... . FDool Dool. real Dod जानना-१.मद अर्थात् मानकषाय से होने वाले गर्व तथा राग-द्वेष अर्थात् कषायों के तीव्र उदय से होने वाले प्रीति और अप्रीति रूप परिणामों से रहित हैं, २.पच्चीस कषाय रूप मल, सत्ता के द्रव्यकर्म तथा उनके उदय से होने वाले भाव मल से रहित हैं और इसी कारण अतिशय से विशुद्ध हैं-निर्मल हैं तथा ३. चित्तपरिणाम' अर्थात मन के परिणमन रूप विकल्पों से रहित हैं, ४.ज्ञानावरण कर्म के क्षय से क्षयोपशम रूप मन के विकल्प जिनके नहीं हैं-ऐसे केवल एक ज्ञान रूप और वीतराग स्वरूप भाव अरहंत जानना।।४०।। 0 उत्थानिका] 000 听听听听听听听听听听听听听听听器巩業 आगे भाव ही का विशेष कहते हैं :सम्मइंसण पस्सइ जाणदि णाणेण दव्वपज्जाया। सम्मत्तगुणविसुद्धो भावो अरहस्स णायव्वो।। ४१।। सत् दरश से देखें, दरव-पर्याय जाने ज्ञान से । ज्ञातव्य अर्हत् भाव है, सम्यक्त्व गुण से विशुद्ध जो।।४१।। अर्थ १.सम्यग्दर्शन से तो अपने को तथा सबको सत्ता मात्र से जो देखता है ऐसा केवलदर्शन जिसके है, २.ज्ञान से सब द्रव्य-पर्यायों को जो जानता है ऐसा जिसके केवलज्ञान है तथा ३.सम्यक्त्व गुण से विशुद्ध है, क्षायिक सम्यक्त्व जिसके पाया जाता है-ऐसा अरहंत का भाव जानना। भावार्थ अरहंत होते हैं सो घातिया कर्मों के नाश से होते हैं सो मोह कर्म के नाश से तो मिथ्यात्व और कषायों का अभाव होने से उनके परम वीतरागता एवं सर्व प्रकार निर्मलता होती है तथा दर्शनावरण और ज्ञानावरण कर्मों के नाश से अनन्त दर्शन और अनन्त ज्ञान प्रकट होते हैं जिनसे वे सब द्रव्य-पर्यायों को एक समय में प्रत्यक्ष देखते और जानते हैं। 明崇明崇崇明崇勇崇崇明業 F४-३८ 戀戀戀勇崇崇明崇崇勇 R 崇先养养帶藥崇崇崇崇崇勇攀事業禁禁禁禁禁禁勇
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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