________________
गाथा ४,५
जीव के ज्ञानादि तीनों भाव अक्षय तथा अमेय होते हैं तथा उन तीनों की शुद्धि के लिए जिनदेव ने ये दो प्रकार का चारित्र कहा है|
संयमाचरण चारित्र
चारित्र/ सम्यक्त्वाचरण
इन दोनों में
| पहला जो सम्यक्त्व के आचरणस्वरूप चारित्र है सो जिनभाषित तत्त्वों के ज्ञान व श्रद्धान से शुद्ध है।
तथा
दूसरा जो संयम का आचरणस्वरूप चारित्र है वह भी जिनदेव के ज्ञान से दिखाया हुआ शुद्ध है।
३-५२