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________________ अष्ट पाहड स्वामी विरचित आचार्य कुन्दकुन्द Doo Doo/ M म HDola De ज्ञान है सो जलवत् है और आत्मा के रागादि मल लगने से मलिनता होती है सो इस ज्ञान रूपी जल से रागादि मल धोकर जो अपनी आत्मा को शुद्ध करते हैं वे मुक्ति रूपी महल में बस आनन्द भोगते हैं और उनको तीन भुवन के शिरोमणि सिद्ध कहा जाता है।।४१।। उत्थानिका 崇崇崇崇崇明藥藥藥業第崇勇崇勇樂事業蒸蒸男戀戀 आगे कहते हैं कि 'ज्ञान गुण से जो रहित हैं वे इष्ट वस्तु को नहीं पाते इसलिये गुण-दोष को जानने के लिये ज्ञान को भली प्रकार से जानना' : णाणगुणेहिं विहीणा ण लहंति ते सुइच्छियं लाह। इय णाऊ गुणदोसं तं सण्णाणं वियाणेहि।। ४२।।। जो ज्ञान गुण से हीन वे, पाते ना इच्छित लाभ को। यह जान सम्यग्ज्ञान जानो, दोष-गुण के ज्ञान हित ।।४२।। अर्थ ज्ञान गुण से हीन जो पुरुष हैं वे अपनी इच्छित वस्तु के लाभ को नहीं पाते हैं ऐसा जानकर हे भव्य ! तू पूर्वोक्त जो सम्यग्ज्ञान है उसको गुण-दोष को जानने के लिये जान। भावार्थ ज्ञान के बिना गुण-दोष का ज्ञान नहीं होता तब अपनी इष्ट तथा अनिष्ट वस्तु को नहीं जानता और तब इष्ट वस्तु का लाभ नहीं होता क्योंकि सम्यग्ज्ञान ही से गुण दोष जाने जाते हैं इसलिये गुण-दोष को जानने के लिये सम्यग्ज्ञान को जानना सम्यग्ज्ञान के बिना हेय-उपादेय वस्तुओं का जानना नहीं होता और हेय-उपादेय को जाने बिना सम्यक् चारित्र नहीं होता इसलिये ज्ञान ही को चारित्र से प्रधान करके कहा है।।४२।। 崇崇明崇崇明崇崇明藥業業業%崇崇崇勇崇崇勇崇勇崇崇勇 崇崇明崇崇明藥崇崇勇 गाTar
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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