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________________ अष्ट पाहड स्वामी विरचित आचार्य कुन्दकुन्द 8 Deol Dool इनका अभाव-ये द्वितीय व्रत जो सत्य महाव्रत उसकी भावना हैं। भावार्थ असत्य वचन की प्रव त्ति होती है सो क्रोध से तथा हास्य से तथा लोभ से तथा परद्रव्य से मोह रूप मिथ्यात्व से होती है सो इनका त्याग होने पर सत्य महाव्रत द ढ़ रहता है। पुनः 'तत्त्वार्थसूत्र' में पाँचवी भावना 'अनुवीचीभाषण' कही है सो उसका अर्थ यह है कि जिनसूत्र के अनुसार वचन बोले और यहाँ मोह का अभाव कहा सो मिथ्यात्व के निमित्त से सूत्र विरुद्ध कहता है, मिथ्यात्व का अभाव होने पर सूत्र विरुद्ध नहीं कहता सो ही अनुवीचीभाषण का भी यह ही अर्थ हुआ, इसमें अर्थभेद नहीं है।।३३।। उत्थानिका 添添添添添添添馬樂樂業兼藥藥藥禁藥男男戀勇 आगे 'अचौर्य महाव्रत की भावना' को कहते हैं :सुण्णायारणिवासो विमोचितावास जं परोधं च। एसणसुद्धिसउत्तं साहम्मीसमविसंवादो।। ३४।। हो विमोचित वा शून्यग ह, उपरोध बिन थल वास हो। हो एषणा शुद्धि, ना साधर्मी से विसंवाद हो ।।३४ ।। 柴柴業%崇崇崇崇業乐業業助兼功兼業助業樂業先崇勇崇 अर्थ १.'शून्यागार' अर्थात् गिरि गुफा एवं तरु कोटरादि में निवास करना पुनः २.'विमोचितावास' अर्थात् जो लोगों ने किसी कारण से छोड़ दिया हो ऐसा जो ग ह-ग्रामादि उसमें निवास करना पुनः ३. परोध' अर्थात् दूसरे का जहाँ उपरोध न किया जाये, किसी वसतिकादि को अपनाकर दूसरे को रोकना-ऐसा न करना पुनः ४.'एषणाशुद्धि' अर्थात् आहार शुद्ध लेना पुनः ५.साधर्मियों से विसंवाद न करना-ये पाँच भावना त तीय महाव्रत की हैं। 乐器乐乐業统業坊業垢業乐業業项業乐業乐業坊業垢業乐業乐
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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