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________________ अष्ट पाहुड़aat स्वामी विरचित आचार्य कुन्दकुन्द Plect ADGE Joect Cउत्थानिका! " 藥業兼崇明崇明藥業業業業乐業%崇崇崇崇%崇崇崇 आगे तीसरा लिंग स्त्री का कहते हैं :लिंग इत्थीण हवदि भुंजइ पिंडं सुएयकालम्मि। अज्जियवि एकवत्था वत्थावरणेण भुंजेइ ।। २२।। है लिंग स्त्री ऐसा कि, भोजन करे इक काल में। हो आर्यिका भी वस्त्र इक धर, आवरणयुत अशन हो।।२२।। अर्थ लिंग है सो स्त्रियों का ऐसा है-एक काल में तो भोजन करे, बार-बार न खाये तथा आर्यिका भी हो तो एक वस्त्र धारण करे और भोजन करते समय भी वस्त्र के आवरण सहित करे, नग्न नहीं हो। भावार्थ स्त्री आर्यिका भी होती है और क्षुल्लिका भी होती है सो दोनों ही भोजन तो दिन में एक बार ही करें और जो आर्यिका हो सो एक वस्त्र धारे तथा वस्त्र धारण किये हुए ही भोजन करे, नग्न नहीं हो-ऐसा स्त्री का तीसरा लिंग है।।२२।। 崇养崇崇崇崇崇崇崇崇勇攀藤勇攀事業樂業禁帶男 आगे कहते हैं कि 'वस्त्रधारक के मोक्ष नहीं है, मोक्षमार्ग नग्नपना ही है : ण वि सिज्झइ वत्यधरो जिणसासण जइ वि होइ तित्थयरो। णग्गो विमोक्खमग्गो सेसा उम्मग्गया सव्वे ।। २३।। यदि तीर्थकर भी हो न सीझे, वस्त्रधर जिनशासने। नग्नत्व मुक्तीमार्ग है, अवशेष सब उन्मार्ग हैं।।२३।। अर्थ जिनशासन में यह कहा है कि वस्त्र को धारण करने वाला सीझता नहीं है (२-३४) 業業樂業樂業、 藥業樂業先崇勇崇崇明 P ramms
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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