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________________ योगसार प्रवचन (भाग-२) ७३ यह आत्मा नरक, पशु, देव, मनुष्य, सिद्ध गति इन पाँच गतियों में जाने की शक्ति रखता है। ऐसा विचार करना । गति की योग्यता भी मेरे कारण है, मोक्षगति की योग्यता भी मेरे कारण है। इस प्रकार अन्दर में अपनी सत्ता का इन पाँच प्रकार से विचार करना, यह एक स्वरूप में पाँच प्रकार का विचार वह व्यवहार है। छह प्रकार से विचार... अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त वीर्य, अनन्त सुख, क्षायिक सम्यक्त्व, क्षायिक (चारित्रस्वरूप है...) अथवा गुणस्वरूप है, ऐसे गुणस्वरूप है, ऐसे गुणस्वरूप है । अथवा पूरब, पश्चिम, दक्षिण, उत्तर, ऊपर-नीचे... छह दिशा की बात करते हैं। छह यह लेना, छह यह लेना और या छह दिशाएँ लेना - ऐसा कहते हैं। इन छह दिशाओं में जाने की शक्ति का धारक है। ऊर्ध्व, अधो, पूरब, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण इन छह में (जाने की) अपनी शक्ति रखता है: कर्म के कारण नहीं। कहो, समझ में आया? नरक में जाने की योग्यता भी अपनी पर्याय में स्वयं के कारण है। पशु में जाने की, निगोद में जाने की पर्याय की योग्यता स्वयं के कारण से है। अपने अस्तित्व में सत्ता की योग्यता से है। पर तो निमित्तमात्र वस्तु है। समझे? छह गुणस्वरूप अथवा छह दिशा में जाने की योग्यतावाला। अथवा आत्मा छह गुणवाला है। वे अस्तित्व आदि लिये न! सामान्यगुण आते हैं न? 'जैन सिद्धान्त प्रवेशिका' में छह (गुण आते हैं)। अस्तित्व, वस्तुत्व, द्रव्यत्व, प्रमेयत्व, अगुरुलघुत्व, प्रदेशत्व, इन छह सम्यक् गुणों का धारी है, इन छह सच्चे गुणों का धारी है। समझ में आया? सात प्रकार का विचार करे तो अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त सुख, अनन्त ज्ञानचेतना, अनन्त वीर्य... देखो, पहले ज्ञान तो डाला है।.... क्षायिक सम्यक्त्व और क्षायिक चारित्र इन सात गुणस्वरूप है।... अथवा सात भंगस्वरूप है - ऐसा विचार करना। सप्तभंगी ली है। स्यात् स्व से अस्ति, स्यात् पर से नास्ति, स्यात् अस्ति-नास्ति, स्यात् अवक्तव्य, स्यात् अस्ति अवक्तव्य, स्यात् नास्ति अवक्तव्य स्यात् अस्ति नास्ति अवक्तव्य। सात भंग से - भेद से आत्मा का विचार करना, वह भी एक ज्ञान की विकल्प की दशा है। ज्ञान में उस प्रकार की (दशा) है। इस प्रकार विचारना भी धरता है, उसमें है। ये सातों सप्त भंगी आत्मा में है, ऐसा विचार करना। पर के कारण वे नहीं हैं, समझ
SR No.009482
Book TitleYogsara Pravachan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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