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________________ ४०६ गाथा-१०७ चौथे गुणस्थान से अनुभव शुरु हो जाता है। आहा...हा... ! यह सब बातें पण्डितजी को सब पता है। वहाँ से अलग पड़कर निकले हैं न! बहिन भी एक बार नहीं कहती थीं? ऐसा कुछ कहती थीं। मैंने कहा, उनसे अलग क्यों पड़े? एक बार तुम ऐसा बोलते थे, एक ओर वे निकल गये। रतनचन्दजी साथ में रहते थे न? तम यहाँबोले थे. रास्ता अलग हो गया। साथ रहते थे... मार्ग तो बापू! यह है वही है। आहा...हा...! समझ में आया? चौथे गुणस्थान से,.... स्वयं आगे कहेंगे, हाँ! देखो! यहाँ है । स्वयं कहेंगे। मुमुक्षु-........... उत्तर - द्रव्यदृष्टि से ऐसा भेद भी नहीं, यह आनन्द है – ऐसा भेद भी नहीं। दृष्टि का विषय ऐसा द्रव्य में नहीं । ज्ञान के अखण्ड में भी नहीं, ज्ञान के ज्ञेय के अखण्ड में भी भेद नहीं और दर्शन की द्रव्यदृष्टि में भेद नहीं। यह आनन्द, यह तो समझाना है, वरना आनन्दमय है; एक भिन्न गुण से देखना वह व्यवहार है। यह तो समझाने की विधि है कि एक ज्ञायक है। अनन्त गुण आ जाते हैं। प्रवचनसार में आया है, नहीं? एक असाधारण ज्ञानगुण को कारणरूप से ग्रहण करके... ऐसा आया है। प्रवचनसार । कैसे सिद्ध होता है ? अन्तिम अधिकार । एक असाधारण ज्ञानस्वभाव को कारणरूप ग्रहण करके जो कार्यरूप दशा को प्राप्त हुए हैं। ऐसा प्रवचनसार है। शास्त्र में तो सब बात (आयी है)। लिखा है ज्ञान ! समझ में आया? कितने में है ? ए...ई... ! थोड़ा लिख रखना चाहिए, मुँह के आगे। अपने यह बात हो गयी है। ___एक असाधारण ज्ञान को ग्रहण करके.... इक्कीस गाथा – इन्द्रियों के अवलम्बन से अवग्रह-ईहा-अवाय पूर्वक क्रम से केवली भगवान नहीं जानते, (किन्तु) स्वयमेव समस्त आवरण के क्षय के क्षण ही, अनादि अनन्त, अहेतुक और असाधारण ज्ञानस्वभाव को ही कारणरूप ग्रहण करने से... यह संस्कृत टीका है, हाँ! अनादि अनन्त (अर्थात्) भेद नहीं। अहेतुक – कोई हेतु नहीं, असाधारण (अर्थात्) दूसरा गुण नहीं । इस ज्ञानस्वभाव को ही कारणरूप ग्रहण करने से तत्काल ही प्रगट होनेवाले केवलज्ञानोपयोगरूप होकर परिणमित होते हैं;.. ज्ञान से हुआ परन्तु इससे यह ज्ञान ऐसा भी नहीं। यह भेद हो गया। समझाने के (लिए ऐसा कहा) । ज्ञान परमभाव
SR No.009482
Book TitleYogsara Pravachan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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