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________________ योगसार प्रवचन (भाग-२) ३६९ छह द्रव्य को मानता नहीं - ऐसा उतारा है। छह द्रव्य को मानता नहीं, वह आत्मा की पर्याय को मानता नहीं; इस प्रकार यह बात यथार्थ है। समझ में आया? भगवान आत्मा... शशिभाई ! देखो! यह अन्यमती छह द्रव्य नहीं मानते, इसका अर्थ कि वे द्रव्य के एक गुण की पर्याय को ही नहीं मानते और अपने द्रव्य की एक पर्याय की सामर्थ्य कितनी है, उसे वह नहीं मानता। समझ में आया? भाई ने कहा है – धर्मदास क्षुल्लक ने, सम्यग्ज्ञानदीपिका में कहा है, जो कोई छह द्रव्य और छह के गुण, पर्याय हैं, इन छह को नहीं मानता, वह आत्मा को बिल्कुल मान ही नहीं सकता। समझ में आया? सम्यग्ज्ञानदीपिका.... भाषा क्षयोपशम बहुत थोड़ा है परन्तु उनकी रुचि का परिणमन और अन्दर धमाकेदार उपदेश है। सम्यग्ज्ञानदीपिका, स्वात्मानुभवमनन – ऐसे दो ग्रन्थ हैं। समझ में आया? जोरदार है । क्षयोपशम कम है, इसलिए बारम्बार पुनरावृत्ति बहुत आती है, वह तो आवे। इन तारणस्वामी में पुनरक्ति बहुत आयी है, बहुत । यह तारणपन्थ है न? पुनरक्ति बहुत, परन्तु अन्दर अध्यात्म का जोर इतना है उनका, इतना जोर है... मेरे प्रमाण नहीं मानो तो निगोदं गच्छई, वहाँ बारबार यह कहते हैं, निगोद जाएगा। भगवान आत्मा अभेदस्वरूप चिदानन्द पर्ण परमात्मा तेरा विराजमान है। उसे एक समय की अवस्था तो नहीं परन्तु ऐसा अनन्त अवस्था का पिण्ड एक गुण और ऐसे अनन्त गुण का पिण्ड एक द्रव्य... जिसके एक गुण की एक पर्याय की ताकत छह द्रव्यों को झेल सके, इतनी ताकत ! छह द्रव्य को जाने, श्रद्धे और स्वीकार करे, इतनी एक पर्याय की ताकत । समझ में आया? आहा...हा...! ऐसा यह भगवान आत्मा, ऐसी अनन्त पर्यायरूप आत्मा को जिसने अन्तर में जाना, उसने छहों द्रव्य के गुण-पर्याय, केवली जानते हैं, वैसा वह मानता है और जानता है। समझ में आया? बहुत सूक्ष्म, भाई! यह सब आत्मा... आत्मा... आत्मा करते हैं परन्तु आत्मा... आत्मा... कितना और कैसा है ? समझ में आया? आत्मा तो अब अभी बहुत गाते हैं। यहाँ की बात ३०-३१ वर्ष से बाहर आयी न! बहुत आत्मा गाने लगे। अभी कोई कहता था? रजनीश का कल कोई कहता था। रजनीश का ऐसा है, अमुक है, अमुक है । मुम्बई ! अरे... ! भगवान ! भाई! मुमुक्षु – मुम्बई में उसके अनुयायी बहुत हैं।
SR No.009482
Book TitleYogsara Pravachan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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