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________________ गाथा - १०० ३५४ जो गिरि गुफा में बैठा, उसमें जो समभाव प्रगट हुआ, उसे सुख का अनुभव होता है । ९९ ( गाथा पूरी हुई) । १०० यह भी सामायिक की व्याख्या है। ✰✰✰ राग-द्वेष का त्याग सामायिक है राय - रोस बे परिहरिवि जो समभाउ मुणेइ । सो सामाइड जाणि फुडु केवलि एम भणेइ ॥ १०० ॥ राग-द्वेष दोऊ त्याग के, धारे समता भाव। सो सामायिक जानिये, भाषे जिनवर राव ॥ अन्वयार्थ - ( जो राय-रोस बे परिहरिवि समभाउ मुणेइ ) जो कोई राग-द्वेष का त्याग करके समभाव की भावना करता है ( सो फुडु सामाइड जाणि ) उसको प्रगटपने से सामायिक जानों (एम केवलि भणेइ ) ऐसा केवली भगवान ने कहा है । ✰✰✰ राय - रोस बे परिहरिवि जो समभाउ मुणेइ | सो सामाइड जाणि फुडु केवलि एम भणेइ ॥ १०० ॥ 1 फुडु और लहु शब्द तो इसमें बहुत आता है । लहु अर्थात् शीघ्र और फुडु अर्थात् प्रगट । जो कोई राग-द्वेष का त्याग करके..... अर्थात् विषमता को देखना छोड़कर, समभाव की भावना करता है..... भगवान आत्मा अत्यन्त वीतराग बिम्ब है, वह तो जानने-देखनेवाला त्रिकाल स्वभाव धारण (करनेवाला) तत्त्व है। ऐसा जो अन्तर में समभाव की भावना करता है। उसे प्रगटरूप से सामायिक जानो... उसकी दशा में सामायिक हुई है। समझ में आया ? मुमुक्षु भावना अर्थात् राग लेना ? उत्तर राग की बात कहाँ है ? किसने कहा ? दूसरा कहता अवश्य है, वह कहता है, हाँ ! रतनचन्दजी कहते हैं। अपने वह नहीं आया था भावना । शुद्धोपयोग की भावना
SR No.009482
Book TitleYogsara Pravachan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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