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________________ गाथा - ९५ लगी हो वह इसे कैसे नहीं रुचेंगे? इसी प्रकार जिसे यह आत्मा... अरे...! यह आत्मा कौन है ? कैसा है ? ऐसी जिसे जिज्ञासा और रुचि हुई हो, उसे यह बात रुचे बिना नहीं रहती । भूख लगनी चाहिए। ३०८ मुमुक्षु - शीघ्रता करता है । उत्तर - हाँ, खाने में शीघ्रता करता है । यह तो यहाँ दृष्टान्त है । कहो, समझ में आया ? I मिट्टी का दृष्टान्त दिया है, व्यवहारनय से पानी मैला दिखता है, पानी मैला दिखता है परन्तु मिट्टी की मलिनता से जल की स्वच्छता भिन्न है, मलिनता से जल की स्वच्छता पृथक् है, समझ में आया ? निश्चय से देखो तो मिट्टी, मिट्टी है, पानी, पानी है। पानी और मिट्टी दोनों एक हुए नहीं हैं । इसी प्रकार आत्मा, कर्म पुद्गलों के संयोग से देखो तो उसे सम्बन्ध व्यवहार से है । स्वभाव से देखो तो उसे सम्बन्ध है ही नहीं। भगवान चैतन्य जैसे जल स्वच्छ पानी के स्वभाव से देखो तो वह स्वच्छ है, वैसे ही भगवान आत्मा के स्वभाव से देखो तो उसे राग और कर्म का लेप है ही नहीं - ऐसी दृष्टि से आत्मा को देखना, उस दृष्टि को सत्यदृष्टि कहते हैं । ज्ञान करने के लिए व्यवहार वस्तु है, राग है, कर्म है, वह ज्ञान करने के लिए है, जानने के लिए है, आदरणीय तो यह है। समझ में आया ? शुद्ध ज्ञाता-दृष्टा परमात्मारूप दिखता है, वही दृष्टि ध्याता के लिए परम उपकारी है। पानी को स्वच्छ देखना, यही पानी की स्वच्छता के स्वरूप का सच्चा ज्ञान है; वैसे भगवान आत्मा को मैल और कर्मरहित देखना - ऐसा स्वभाव उस दृष्टि और ज्ञान को सच्ची दृष्टि और ज्ञान कहते हैं। समझ में आया ? दो नय का ज्ञान कहते हैं। व्यवहारनय से नव तत्त्वों को जानना... समझ में आया ? उसमें अशुद्धता भेद से वह जानना परन्तु उससे रहित शुद्ध को जानना, वह उसका प्रयोजन है। समझ में आया ? फिर द्रव्यसंग्रह और तत्त्वार्थसूत्र का अभ्यास करना, यह सब बात की है। पुरुषार्थसिद्धियुपाय का दृष्टान्त दिया है । यह बहुत सरस है । देखो, मुनिराजों ने अज्ञानियों को समझाने के लिए असत्यार्थ को अथवा अशुद्ध पदार्थ को कहनेवाले
SR No.009482
Book TitleYogsara Pravachan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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