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________________ योगसार प्रवचन (भाग-२) में दर्शन करने से निद्यत और निकाचित कर्म छूट जाते हैं - ऐसा धवल के पहले भाग में है। ऐसा करके आधार दिया है। अरे... ! यह तो आत्मा के दर्शन से (कर्म) टूटे, तब निमित्त से कथन कहा जाता है । वह ऐसा कहते हैं तब परमात्मप्रकाश में कहते हैं कि आत्मा देव, भगवान यहाँ देह में विराजमान हैं, वहाँ देव मानेंगा तो मूढ़ है । वह तो व्यवहार स्थापना है। समझ में आया ? वह तो शुभभाव का निमित्त है। भगवान देव तो यहाँ विराजमान है । इस देव का तुझे पता नहीं (और) तू जहाँ-तहाँ भटका करे तो मर जाएगा। ‘राजा भिक्षार्थे भ्रमे ऐसी जन की टेव' बड़ा तीन लोक का नाथ जहाँ तहाँ कहे हे भगवान! हे भगवान! मुझे देना। वहाँ है तेरी मुक्ति ? संवर - निर्जरा वहाँ उनके पास है ? ए...ई... ! भगवान तो यहाँ है । २९१ तुम राजुल से पूछते थे, कहाँ है तेरी गीता ? यहाँ गीता थी न, गीता से कहे गीता कहाँ है ? गीता यह रही - ऐसा कहे । जातिस्मरण हुआ है न, इनके भतीजे की लड़की यहाँ आयी थी तब पूछा था, गीता कहाँ है ? पूर्वभव में उसका नाम गीता था। यहाँ जूनागढ़ में लुहाना की लड़की (थी)। गीता कहाँ है (तो कहे) गीता यह रही, गीता यह रही । गीता का आत्मा यह रहा, मैं यह रहा । भगवान कहाँ है ? भगवान यहाँ है ? बात तो सही करना चाहिए न ? मैंने कहा गीता कहाँ है ? (तो कहा) यहाँ है। ऐसा बोली थी, हाँ! यहाँ आ दिन रखी थी, यहाँ चार बार आ गयी है। अभी दो सौ लड़के थे, तब भी बताने के लिए लाये थे । गीता कहाँ है ? यह रही। पूर्व भव में तेरा नाम क्या था ? गीता ! कहाँ से आयी है ? जूनागढ़ से आयी हूँ, आ रही हूँ। धीरुभाई ! तुमने वह लड़की देखी है या नहीं ? नहीं देखी ? अभी चार बार आ गयी। आहा... हा... ! मनसुखभाई ! हमारे मनसुखभाई, शाम को पूछते हैं कि ऐसा होता होगा ? परन्तु यह हुआ है न! होता क्या होगा ? अकेले पैसे कमाने में मजदूर... मजदूर... मजदूर... बड़े। मलूकचन्दभाई ! सच्ची बात होगी ? वे शाम को पूछते थे। ऐसा होता होगा ? परन्तु यह हुआ है न ? होता होगा क्या ? मुमुक्षु – परन्तु यह तो दूसरों को न । उत्तर - परन्तु दूसरे को हुआ है या नहीं ? हैं ? पौने छह वर्ष, ढाई वर्ष में बोली, ढाई वर्ष में बोली, मैं जूनागढ़ से आयी हूँ, मेरा नाम गीता है, वहाँ मुझे बुखार आया था और
SR No.009482
Book TitleYogsara Pravachan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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