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________________ योगसार प्रवचन (भाग-२) २७७ क्रियाकाण्ड से नौवें ग्रैवेयक ऊँचे गया। फिर पीछे पटका... चार गति में भटकने को फिर से आया परन्तु इसने आत्मा की दृष्टि, आत्मा का ज्ञान और अनुभव नहीं किया। दृष्टान्त देते हैं। शक्कर खाने से मिठास.... आती है। शक्कर (खावे तो) मिठास दिखती है, नीम को खाने से कड़वाहट दिखती है और नमक खाने से खारापन दिखता है। ऐसे भगवान का अनुभव करने से आत्मा को आनन्द आता है। यह दृष्टान्त.... दृष्टान्त के लिए है या दृष्टान्त सिद्धान्त के लिए है? वह नीम खाने से कड़वाहट दिखे, नमक खाने से खारापन दिखे, शक्कर खाने से मिठास दिखे, अफीम खाने से कड़वाहट दिखे; तब आत्मा का अनुभव होने पर कुछ होता है या नहीं - ऐसा कहते हैं । आहा...हा...! उसी प्रकार आत्मा के शुद्धस्वभाव में रमणता करने से आत्मानन्द का स्वाद आता है। जैसे, वह कड़वा स्वाद, मीठा स्वाद, खारा स्वाद (आता है), (वैसे ही) भगवान आत्मा में आनन्द है, उसका सम्यग्दर्शन करने से, उसका ज्ञान करने से, आत्मा को आनन्द का स्वाद आता है। उसे आत्मधर्म कहा जाता है। आहा...हा...! मुमुक्षु : शक्कर जैसा स्वाद आता है ? उत्तर : शक्कर जैसा मीठा कहाँ, धूल है। मीठा तो जड़ है, ऐसा कहते हैं। आत्मा का स्वाद शक्कर जैसा मीठा होगा न? शक्कर तो जड़ मिट्टी धूल है और इसे (आत्मा को) शक्कर का स्वाद आता है ? यह शक्कर तो जड़ है, मीठी अवस्था तो मिट्टी है, इसके ख्याल में आता है कि यह मीठी है. बस! इतना। मीठा होकर मीठे को नहीं जानता, ध्यान रखना। शक्कर मीठी है न? मीठी तो जड़ की अवस्था, मिट्टी-धूल की है, यह जाने कि यह मीठा, यह आत्मा मीठा होकर मीठे को जानता है ? आत्मा ज्ञान में रहकर मीठे को भिन्नरूप से यह मीठा है – ऐसा जानता है। मीठा होकर जाने तो आत्मा जड़ हो जायेगा। आहा...हा...! ऐसा समझना पड़ेगा? कल्याणजीभाई! बहियों के लिए, नामे के लिए कितना समझना पड़ता होगा? है ? बनिये तो चक्रवृत्ती ब्याज निकालते हैं, दस लाख दिये हों, चार आने के हिसाब से, अभी तो महँगा हो गया है पहले की बात है। दस लाख दिये हों, चार आने के हिसाब से तो एक दिन का ब्याज निकालते हैं और ब्याज मिलाकर फिर वापस चार आने का दूसरा दिन का निकालते हैं। उसका ब्याज मिलाकर, चार आने का दूसरे दिन का
SR No.009482
Book TitleYogsara Pravachan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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