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________________ योगसार प्रवचन (भाग-२) २१३ समझ में आया? 'जो जो देखी वीतराग ने सो सो होसी वीरा, अनहोनी कबहूँ न होसी काहे होत अधीरा...' तेरी दृष्टि स्वभाव पर पड़कर यदि शुद्धि की वृद्धि हुई (तो) भगवान ऐसा देखते हैं, भगवान ऐसा देखते हैं। समझ में आया? परम लाभ समझता है। __ मैं सर्व सिद्ध समान शुद्ध हूँ। मैं सर्व शुद्ध, सर्व शुद्ध का अर्थ थोड़ा शुद्ध – ऐसा नहीं । मैं वस्तु हूँ, वह तो सर्व शुद्ध है और दृष्टि का विषय द्रव्य है। इस दृष्टि ने सर्व शुद्ध को ही स्वीकार किया है, समझ में आया? सिद्धसम। 'सिद्धसमान सदा पद मेरो' यह बनारसीदास में आता है या नहीं? चेतनरूप अनूप अमूरत सिद्धसमान सदा पद मेरो – बस! इतनी बात। फिर मोह महात्म. यह तो अनादि की बात है। व्यवहारदृष्टि में कर्म का संयोग है, वह त्यागने योग्य है – ऐसा समझता है, जो संसारवास में क्षणमात्र भी रहना नहीं चाहता... आहा...हा...! समझ में आया? ऐसा रोग आवे... क्या कहते हैं ? यह पैर में हो जाता है न? उल्टी और दस्त, कॉलेरा! आहा...हा...! यह चाहता है कि रोग रहे । हैं ? मलूकचन्दभाई को पता है, दो लड़कों को छोड़कर... तुम थे? यह तो दूसरे दो लड़के नहीं तुम्हारे? माडल में से दो युवा भाई... बहुत लाग थे । कोलेरा हो गया, माँ-बाप साथ में, जंगल में पाँच सौ-छह सौ कितने लोग साथ थे? फिर इन्हें कोलेरा हो गया। लड़के चल नहीं सकते साथ में माल नहीं, मकान नहीं, वाहन नहीं, दोनों को जंगल में छोड़ दिया। जंगल में छोड़कर इनके माँ-बाप चले गये, भाई! हम क्या करें? हम रहेंगे तो हम मरेंगे, यहाँ कोई साधन नहीं... आस-पास पच्चीस-पचास गाँव में कोई गाँव नहीं, यह तो साथ में काफिला है, जहाँ जाओगे (वहाँ आऊँगा) चावल और दाल साथ में रखते, थोड़ा खाकर पूरा करे। ये दो युवा लोग, है ! आहा...हा... ! यह माँ-बाप उन्हें देखते हुए जंगल में चले गये। कोलेरा... हुआ था। उठाये कौन? चलाये कौन? दे कौन? रखे कौन? आहा...हा... ! इस जंगल में दो युवा अकेले, उसमें क्रमश: मरे होंगे, मुर्दा और यह अकेला... आहा...हा...! क्या हो? जगत की दशा निराधार अशरण है। शरण तो अन्दर में आत्मा है। मुमुक्षुः... समाधान : हाँ, परन्तु है न ! यह मैंने देखा है। हम जब छप्पनिया का प्लेग था न?
SR No.009482
Book TitleYogsara Pravachan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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