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________________ १७४ गाथा-८६ प्रभु, उसका पूर्ण स्वभाव, उस स्वभाव का ही एक का घोलन कर, घोलन कर, उस स्वभाव का ही घोलन कर। समझ में आया? किसी विकल्प को स्पर्श न कर। यह स्वभाव पूर्ण स्वरूप व्यापक असंख्य प्रदेशी, अनन्त, इसमें ही, इसमें ही घोलन कर। __ आत्मा द्वारा आत्मा का मनन कर... मनन का अर्थ विकल्प की बात नहीं है, हाँ! मनन अर्थात् विकल्प, चिन्ता बिलकुल नहीं। अन्तर में ऐसा का ऐसा एकाकार स्वरूप में पूर्ण एकाकार (हो)। मोक्ष की सिद्धि शीघ्र ही कर सकेगा... तुझे मुक्ति की सिद्धि हो जायेगी, उसका फल मुक्ति है। समझ में आया? आत्मा का मनन निश्चिन्त होकर करना चाहिए। गृहस्थपने में इतनी चिन्ता का त्याग नहीं हो सकता। इतनी बात विशेष करते हैं। गृहस्थ का व्यवहार धर्म... व्यवहार धर्म षट्कर्म, दया, दान आदि का विकल्प, पैसा कमाना... (यह) अर्थ पुरुषार्थ; कामभोग करना... यह काम पुरुषार्थ; इन तीनों कार्यों के लिए मन-वचन-काया को चञ्चल और राग-द्वेष से पर्ण आकलित रखना पडता है... धर्म, काम, अर्थ, मोक्ष फिर, यहाँ तो अभी तीन के विकल्प हैं न? अर्थ (अर्थात्) पैसा कमाने का अशुभराग, काम अशुभ(राग) और धर्म शुभ परन्तु है तो शुभविकल्प की जाल। कोई ऐसा कहता है कि उसे भी धर्म कहा है और उसे तुम पुण्य कहते हो? फिर कितने ही ऐसा कहते हैं। परन्तु भाई ! उसे 'समयसार' में पुण्य कहा है। प्रभु! व्यवहार धर्म कहो या पुण्य कहो। निश्चय धर्म नहीं, व्यवहारधर्म । व्यवहार धर्म अर्थात् धर्म नहीं, धर्म नहीं; नहीं उसे कहना, उसका नाम व्यवहार है। अब उसे भाषा में तकलीफ आती है, वे पण्डित आये थे न, नहीं? तर्क तीर्थ, जमनालालजी। उन्हें अधर्म कहा तो कहने लगे नहीं... नहीं... नहीं... परन्तु तुम्हें शब्द में क्या तकलीफ आती है ? भगवान आत्मा ! मुमुक्षु : सुनना रुचता नहीं है? उत्तर : अरे... ! परन्तु किसलिए नहीं रुचता? प्रभु ! तेरी शान्ति तुझे नहीं रुचे और राग रुचे? तो तू कहाँ जाएगा? समझ में आया? जहाँ तक राग का पोषण और रुचि है, वहाँ तक वीर्य अन्दर में जाने का कार्य नहीं कर सकता। समझ में आया? जैसा उसका स्वरूप स्वतन्त्र शुद्ध है, वैसी अन्तरदृष्टि करने में यदि राग की रुचि रह गयी और उससे कुछ लाभ
SR No.009482
Book TitleYogsara Pravachan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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