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________________ योगसार प्रवचन (भाग-२) १२७ पकड़ सके, लो! मुम्बई बताया, दूसरी जगह बताया, अनुमान करते हैं, यह सब डॉक्टर अनुमान करते हैं। प्रयोग करते हैं, करते-करते एक दो का ख्याल में (आवे तो) दूसरों को भी लगा देते हैं, तुम्हारे भी ऐसा लगता है। मुमुक्षु : खून की जाँच करते हैं। उत्तर : खून की जाँच करे तो भी कितना अन्तर पड़ेगा? यह कहते हैं, खून की जाँच करते हैं। यह जाँच न, यह कहते हैं । तेरे आत्मा में तेरा खून-कितनी ताकत है। तुझमें अनन्त बल है, समझ में आया? आहा...हा...! पेशाब की जाँच करते हैं, पेशाब की क्या जाँच करते हैं? पेशाब राग है। समझ में आया? जाँचे कि राग विकार दुःखरूप है, चाहे तो शुभ हो या चाहे तो अशुभ हो; दोनों राग रोग है। ऐसे सम्यग्दृष्टि को अपनी नाड़ी पकड़कर निरोगता कैसे करना, इसका उसे पता पड़ता है। समझ में आया? । विकार दूर करने के लिए पूर्णरूप से कटिबद्ध हो जाता है, उसने श्रीगुरु परम वैद्य से यह भी जाना है कि भावकर्म का रोग मिटाने के लिए सत्ता में रहे हुए कर्मों का नाश करने के लिए... ऐसे दोनों लिए – पुण्य-पाप का भाव और जड़कर्म। नवीन रोग के कारण से बचने के लिए शुद्धात्मानुभव ही एक परम औषध है। 'श्रीमद्' ने कहा है न? 'आत्मभ्रान्ति सम रोग नहीं, आत्मभ्रान्ति सम रोग नहीं सद्गुरु वैद्य सुजान; गुरु आज्ञा सम पथ्य नहीं, औषध विचार ध्यान' - विचार और ध्यान औषध है। आत्मभ्रान्ति सम रोग नहीं, सद्गुरु वैद्य सुजान; गुरु आज्ञा सम पथ्य नहीं, औषध विचार ध्यान। भगवान आत्मा पूर्णानन्द अतीन्द्रिय आनन्द और अतीन्द्रिय ज्ञान का रसकन्द प्रभ, उसमें रागादि विकल्प मेरे हैं - ऐसी भ्रान्ति-मिथ्याभ्रान्ति जैसा जगत् में दूसरा कोई बड़ा रोग नहीं है, बड़ा रोग है। गुरु उसके वैद्य-सुजान वैद्य है। भाई ! यह तेरा रोग है। कहा न? राग तेरा रोग है। तू लाभदायक मानता है, वह तेरी खोटी बुद्धि है। हमारे प्रति भी तू राग करता है, वह राग रोग है – ऐसा कहते हैं । ओहो...हो... ! समझ में आया? भावकर्म का रोग मिटाने के लिए और सत्ता में रहे हुए कर्म... अर्थात् निमित्तरूप... नवीन रोग के कारण से बचने के लिए शुद्धात्मानुभव ही एक परम औषध है।
SR No.009482
Book TitleYogsara Pravachan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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