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________________ योगसार प्रवचन (भाग-२) १०३ उत्तर : कौन रखे? रखे कौन और दे कौन? समझ में आया? एक रजकण भी उसके कारण से हिलता-चलता है तो वह रजकण आत्मा चलावे-दे, यह तीन काल में आत्मा में नहीं है। एक रजकण, परमाणु भी यहाँ आता है, जाता है, वह उसके कारण होता है। आत्मा एक रजकण को भी नहीं दे सकता, ले सकता है – (ऐसा अर्थात् लेना-देना) आत्मा में है ही नहीं। राजमलजी! एक रजकण को भी नहीं कर सकता तो परमेश्वर कहाँ से हुआ? रजकण का कुछ नहीं करता और परमात्मा हुआ? अनन्त बल (धारक हुआ)? मुमुक्षु : साधारण मनुष्य बहुत करता है और भगवान कुछ नहीं करते? उत्तर : कौन करता है? साधारण (मनुष्य) धूल भी नहीं करता। अज्ञानी राग करता है। राग और द्वेष करता है। दुनिया का व्यापार-धन्धा तीन काल में कभी वह नहीं करता। ऐसा होगा? मलूकचन्दभाई ! दुकान की पैढ़ी पर बैठकर धन्धा करे वह तो सब पुद्गल की क्रिया है। कहो, समझ में आया? 'अनुभवप्रकाश' में बहुत लिखा है। उसमें - 'आत्मावलोकन' में भी लिखा है। समझ में आया? है न? मुमुक्षु : उसमें तो लिखा है, पुद्गल के हैं ? उत्तर : हाँ, वह पुद्गल की बात है। वह सब पुद्गल का खेल है, उसे आत्मा कहाँ करे? समझ में आया? 'अनुभवप्रकाश' में पीछे है। खाना, पीना, हरना, फिरना सब जड़ की क्रिया है। अनुभवप्रकाश, दीपचन्दजी', 'दीपचन्दजी' साधर्मी हो गये हैं, दो सौ वर्ष पहले दिगम्बर में (हुए हैं)। बहुत सरस! पहले तो दिगम्बर के गृहस्थ भी ऐसे थे, पण्डित भी बहुत आत्मार्थी थे। अनुभवप्रकाश यहाँ है, लो! यहाँ है (पृष्ठ-६५)। दश प्रकार का परिग्रह - क्षेत्र, बाग, नगर, कुंआ, बाबड़ी, तालाब, नदी, आदि... जितने पुद्गल कहते हैं। वे सब पर हैं, उन्हें आत्मा कुछ नहीं कर सकता। माता-पिता, कलत्र, पुत्र-पुत्री, वधु-बन्धु, स्वजन आदि... सर्प, सिंह, व्याघ्र, गज, महिषा आदि सब दुष्ट, अक्षर, अनक्षर, शब्दादि, गाना-बजाना, स्नान, भोग, संयोग, वियोग की सब क्रिया, परिग्रह का मिलाप, वह बड़ा, परिग्रह का नाश वह दरिद्र इत्यादि समस्त क्रिया... यह सब जड़ की क्रिया है। चलना-बैठना, हिलना, बोलना, कंपना, इत्यादि समस्त क्रिया; लड़ना, बाँह भरना, चढ़ना
SR No.009482
Book TitleYogsara Pravachan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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