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________________ ६२ गाथा-९ थाल चढ़ते हैं या नहीं? जीमने का थाल.... ऐसा कुछ आता है न? 'जमोने थाल जिवण मोरारी....' ऐसा आता है। सब सुना है। 'जमोने थाल जिवण मोरारी....' परन्तु किसका थाल? भगवान को थाल कैसा? भगवान को भोजन कैसा? वे तो अनन्त आनन्द का भोजन प्रति समय कर रहे हैं। परमात्मा अनन्त अमृत का अनुभव कर रहे हैं, उन्हें फिर दूसरा भोजन-फोजन कैसा? समझ में आया? तू निर्धान्त ऐसे परमात्मा को जान! इसके अतिरिक्त कोई सच्चा भगवान नहीं हो सकता। कहो, समझ में आया? फिर कोई ऐसा कहते हैं न? भगवान अपना सब हिसाब रखते हैं। हैं ? यहाँ का जो काम करे, उसे तो याद न हो अल्पज्ञ प्राणी है, दूसरे परमात्मा उसका हिसाब रखे, हिसाब.... धर्म राजा बहियाँ देखता है फिर लेना-देना लिखकर इसे नरक में भेजता है। कितने का काम करता होगा? चित्रगुप्त का चौपड़ा/बहियाँ.... कितनी बहियाँ रखता होगा? एक समय में अनन्त मरते, निगोद के जीव एक समय में अनन्त मरते हैं और एक समय में अनन्त उत्पन्न होते हैं। वे अनन्त कितने? समझ में आया? पार नहीं... सिद्ध से अनन्तगुने जीव । आहा...हा...! उनकी बहियाँ कितनी रखते होंगे? यहाँ दो बहियाँ रखने में परेशानी आ जाती है। एक काले बाजार का और एक वह अच्छा साफ-सुथरा । दो रखते हैं न? दो प्रकार की बहियाँ, दूसरे को बताने को दूसरा और दूसरे को बताने को वह। उसमें तो परेशानी आ जाती है। मुमुक्षु – उसमें तो..... उत्तर - वहाँ कहाँ भगवान ऐसा था? वे किसी का नामा-थामा नहीं करते। इसका नामा है सही बात, सत्य, हाँ! भगवान के ज्ञान में लेखा है कि यह जीव इस भव में मोक्ष जाएगा - ऐसा लेखा है। नौंध है, भगवान के ज्ञान में नौंध है। आहा...हा...! भगवान के ज्ञान में नौंध है, वह रोजनामचा है उन्हें यह ज्ञान में। यह जीव इस भव में (केवल) ज्ञान प्राप्त करेगा, इतने भव में मोक्ष जाएगा। ऐसा भगवान के ज्ञान में नौंध है। तदनुसार वहाँ जाएगा। दूसरा होगा नहीं, उसके बदले वह कहता है नौंध कर रखी है, बहियों में लिखा है – ऐसा नहीं। ऐसे परमात्मा को परमात्मा जानना (जिसे) आत्मा का हित करना हो, उसे इस प्रकार पहचान करना। (श्रोता – प्रमाण वचन गुरुदेव)
SR No.009481
Book TitleYogsara Pravachan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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