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________________ ३८ गाथा-५ -गाँव में मन्दिर.... बाँकानेर, मोरबी, राजकोट, और गोंडल, जैतपुर, पोरबन्दर, हैं ? इनकी ओर के बहुत अधिक रह गये, लाठी, बिछिया, बोटाद, लींबड़ी, बड़गाँव, केन्टपुर, जोरावरनगर, चारों ओर मन्दिर-मन्दिर। भाई ! तुझे पता नहीं, प्रभु! उस समय वे पर्याय वहाँ होने के काल में होती है। जिसे उनका प्रेम होता है, उस शुभभाव को निमित्त कहते हैं । ऐसा भाव – व्यवहार आये बिना नहीं रहता परन्तु वह व्यवहार बन्ध का कारण है – ऐसा इसे जानना चाहिए। कहो, समझ में आया? बाबूभाई ! यह ९९ वें यात्रा से मोक्ष हो वह हराम है, यहाँ इनकार करते हैं। यह सब वहाँ मन्दिर बनाने में पड़नेवाले हैं। यह भी यहाँ से जानेवाले हैं, हैं ? कर्ता कहाँ है? कर्ता ही नहीं, यहाँ तो विवाद ही यह है, करे कौन? वहाँ रजकणों की अवस्था होने के काल में होती है, उसे करे कौन? यह तो यहाँ लगी है। सवा तीन-तीन वर्ष होने आये तो भी तुम्हारा चलता नहीं। करना हो तो हो, तो अभी तक क्यों नहीं हुआ? यहाँ तो कहते हैं कि किस संयोग में वहाँ आगे जो रजकण की रचना होने के काल में हुए बिना रहनेवाली नहीं है, उसमें आत्मा के शुभपरिणाम का अधिकार नहीं है कि शुभ परिणाम किया इसलिए हुआ और शुभपरिणाम हुए इसलिए यहाँ आत्मा में एकाग्रता होगी – ऐसा भी नहीं है। शुभ हुए, इसलिए वहाँ हुआ ऐसा नहीं और शुभ हुआ, इसलिए आत्मा की तरफ जाया जाता है - ऐसा भी नहीं है। अरे...! आहा...हा...! यह मार्ग वीतराग का है। आहा...हा...! कहो, प्रवीणभाई! शुभभाव किये, इसलिए हुआ - ऐसा भी नहीं और शुभभाव हुआ, इसलिए आत्मा में अन्तर में एकाग्र होना सरल पड़ेगा (- ऐसा भी नहीं)। ए... मोहनभाई ! इन्होंने तो कराया है न पहले, अब कहाँ हैं इन्हें । ये बहुत सब कहते हैं, हाँ! कि बात तो बहुत ऊँची करते हैं, सत्य लगती है परन्तु फिर यह पूजा, भक्ति और लप तो बड़े-बड़े गाँव-गाँव में बढ़ाते जाते हैं। ऐ...ई...! चिमनभाई ! परन्तु बापू! तुझे पता नहीं है। कौन बढ़ाये? यह तो उसके काल में होता है; किसी के करने से नहीं होता? यहाँ तो बहुत वर्ष पहले मन्दिर बनाने का भाव था, लो! पहले जब (संवत) १९९५ में गये न! तब से बात थी। एक स्फटिक की मूर्ति लाओ। कहाँ? घोघा में थी। कहाँ
SR No.009481
Book TitleYogsara Pravachan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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