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________________ योगसार प्रवचन (भाग-१) ३२९ उत्तर – मात्रा उसमें अधिक है। समझने के लिए। रोग तो स्वयमेव मिटता है। समझ में आया? यह तो दृष्टान्त है। दृष्टान्त में से कहीं पूरा सिद्धान्त नहीं निकलता, आंशिक निकलता है। ___ जैसे वह रसायन रोग को मिटाने का कारण है, वैसे भगवान आत्मा सदचिदानन्द प्रभु का अन्तर में एकाकार होकर अनुभव, श्रद्धा, ज्ञान और रमणता करना, वह एक ही जन्म-जरा-मरण को मिटाने का रसायन है । वह एक ही औषध है। श्रीमद् में आता है न? श्रीमद् में.... आत्मसिद्धि में आत्मभ्रान्ति सम रोग नहीं, सद्गुरु वैद्य सुजान। गुरु आज्ञा सम पथ्य नहीं, औषध विचार ध्यान॥ कहो, समझ में आया? आत्मा राग में, पुण्य में, शरीर में, पर में है – यह मान्यता महाभ्रम है। पुरुषार्थ.... कल आया था न? समस्त वकील को मूर्ख सिद्ध किया था परन्तु ऐसा लेख लिखा था... गप्प मारा था। आहा...हा...! सब वकील मूर्ख हों – ऐसा नहीं। वकील कर्तारूप हो तो मुर्ख हो, कहो समझ में आया? यह तो ऐसा लिखा है कि मुर्ख के जाम जैसा लिखा है। मनुष्य पुरुषार्थ से बड़े-बड़े बाघ को वश करता है – ऐसे पानी पर बड़े स्टीमर चलावें। जैसे लड़का खेल खेलता है, उसमें पानी में चलाता है, इतना पुरुषार्थ ! आत्मा पर का कर नहीं सकता होगा? धूल में भी नहीं करता हो, हाँ! समझ में आया? यहाँ तो कहते हैं कि भाई ! तेरा पुरुषार्थ या तो विकार में चलता है और या पुरुषार्थ स्वभाव में चलता है; पर में तेरा पुरुषार्थ जरा भी काम नहीं करता। आहा...हा...! धूल में भी नहीं करता। एक आँख की पलक झपक सकता है ? ऐसा हो जाता है, धूल में भी कुछ नहीं लेता। सब बहुत लिया है, इसमें.... बिजली, आकाश में से पकड़कर पानी में उतारी, ऐसा किया.... बिजली कहीं आकाश में से पकड़ी होगी? यह बिजली... बिजली होती है न? वह अलग, वह उतारी हुई नहीं। यह तो पंखा चलाया, पानी को बाहर निकालने को यह बिजली... ऐसा कहते हैं, यह तो पता है, इसकी कहाँ बात है, धूल भी कुछ नहीं
SR No.009481
Book TitleYogsara Pravachan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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