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________________ गाथा - ५ ओ...हो... ! संसार में परिभ्रमण का कारण एक मिथ्यादर्शन भाव कहा, तब मुक्ति के उपाय के लिए एक आत्मध्यान कहा। बात गुलाँट खाती है, समझ में आया ? यह शुभ -अशुभविकल्प, राग यह बहिर चीज स्वरूप में नहीं है। इसे हितकर मानना ही मिथ्यादर्शन और मोह है। मिथ्यादर्शन में मोहित जीव है। जबकि आत्मा के मोक्ष का कारण, आत्मा के धर्म का कारण कौन ? कि जो चारों गतियों के भ्रमण से भयभीत है... फिर से लिया, चार गति... पहले समुच्चय बात थी। पहले भाषा में समुच्चय थी, यह चार गति स्पष्ट की। समझ में आया? इतना था यह, समुच्चय था । ३२ यहाँ चार गति का भय (कहकर ) खुला कर दिया । जिसे स्वर्ग में अवतरना है... यह दया, दान, व्रत, भक्ति पालन कर... वह भी दुःखरूप है । चार गति में स्वर्ग में अवतरित होना, वह दुःखरूप है। कितने ही कहते हैं भाई ! अपने अभी पुण्य करो, व्रत पालो, स्वर्ग में जाऊँगा फिर भगवान के पास जाऊँगा... धूल में भी नहीं जा । यहाँ अभी तो आत्मा का अनादर करता जाता है, भगवान का निषेध करता है। भगवान ने कहा- तेरा आत्मा अन्दर आनन्द है इस क्रियाकाण्ड में- दया, दान, व्रत के परिणाम से तुझे आत्मा का हित नहीं है - ऐसा भगवान ने कहा, वह तो यहाँ मानता नहीं। समझ में आया ? इस प्रकार जिसे चार गति के दुःख का त्रास है, भय है, भय.... आहा... हा... ! चारों गतियों के भ्रमण से भयभीत है.... समझ में आया ? दूसरी एक बात आती है, उस बैल की। एक बैल था और उसे नाथ करने के लिए लुहार के यहाँ ले गये थे । दुःख तो बहुत होता है, उसमें बैल खो गया तो ढूँढ़ने के लिए लुहार के यहाँ आये । ( वहाँ जाकर पूछते हैं), यहाँ नहीं ? (लुहार कहता है) परन्तु यहाँ नहीं आयेगा। तू कहाँ ढूंढ़ने आया ? किसी न किसी के खेत में देखने जा तो ठीक है, यहाँ नाथ के लिए आया था, वहाँ फिर से आयेगा ? नाथ करते हैं या नहीं ? पैर बाँधे हों, लोहे से ऐसा करके नाथ करते हैं । उसमें आठ-पन्द्रह दिन में बैल खो गया । यहाँ आया है ? परन्तु यहाँ नहीं आयेगा । यहाँ तो नाथ करे, वहाँ आता होगा? इसी प्रकार चौरासी की गति में जिसे त्रास (लगा) है, वह फिर से गति में अवतरित नहीं होता। उसके लिए यह बात करते हैं, कहते हैं। समझ में आया ? तब क्या करना ?
SR No.009481
Book TitleYogsara Pravachan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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