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________________ ३०४ गाथा-४२ अन्दर में जाए तो तीर्थ हो – तिरने का उपाय मिले। कहो, इसमें समझ में आया? इसमें बड़ा विवाद आया था न? लालनजी' को इस गाथा में उन्हें संघ से बाहर किया था, ऐसा अर्थ पहले किया तब । सम्प्रदाय में रहने दें? ऐ...ई...! अरे! हमारा मन्दिर.... हमारे मन्दिर....! परन्तु उस मन्दिर में तेरा आत्मा वहाँ कहाँ है ? तुझे आत्मा का दर्शन, और आत्मा को देखना और आत्मा का तीर्थ करना या पर का करना है तुझे ? हैं ? मुमुक्षु - बहुत वर्षों तक मन्दिर में थे, स्थानकवासी हैं वे। उत्तर - वे थे, सब पता है। सब पता है, कितने वर्ष पहले का पता है। लालन' हमारे पास रहे थे न! श्रुतकेवली, वापस भाषा है, हाँ! श्रुतकेवली ऐसा कहते हैं । वुत्तु... वुत्तु कि देह देवल में देउ जिणु ऐसा जान । णिसतु इस देह देवालय में भगवान है – ऐसा करके सिद्ध करते हैं कि भाई! तेरा आत्मा तो यहाँ है । आत्मा पूर्णानन्द का नाथ अखण्ड आनन्द, वह इस शरीर में विराजमान है, तू अन्दर उसके सन्मुख देख तो तुझे आत्मा मिलेगा या वहाँ मन्दिर में देखने से आत्मा मिलेगा? समझ में आया? क्या है इसमें? चिमनभाई! पहेली कठिन होती जाती है। यह सब है, वह उत्थापित हो जाता है - ऐसा कहते हैं। कहाँ गये? परन्तु वह तो शुभभाव में वे भगवान कैसे थे – यह स्मरण करने में वे निमित्त हैं। स्मरण करे तो.... परन्तु स्मरण भगवान कैसे थे वे? और वे भगवान कैसे थे, ऐसा मैं हूँ – ऐसा जानने का तो यहाँ आत्मा में है। इसमें समझ में आया? रतनलालजी! भगवान सर्वज्ञ परमेश्वर कैसे थे? – उनका सामने एक प्रतिबिम्ब है (कि) ऐसे भगवान । यह भगवान का स्मरण । पर भगवान, हाँ! समझ में आया? उसमें – शुभभाव में वह (स्मरण) निमित्त था। आत्मा वहाँ से प्राप्त होता है या भगवान साक्षात् विराजते हों, वहाँ से आत्मा प्राप्त होता है ? ऐ....निहालभाई! अद्भुत बात ! एक ओर मूर्ति स्थापित करना, मन्दिर होना और फिर कहे कि उसमें भगवान नहीं। हैं ? वहाँ भगवान होवे तो फिर यहाँ अन्दर देखने का नहीं रहता। ऐसे ही (बाहर ही) देखा करे। ऐसे देखने से यह आत्मा दिखे – ऐसा है? – ऐसा साक्षात् भगवान हो, वहाँ देखे (तो) यह भगवान दिखे ऐसा है ? इस देहदेवालय को तीर्थ और मन्दिर कहा जाता है, जहाँ भगवान आत्मा विराजता है,
SR No.009481
Book TitleYogsara Pravachan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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