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________________ योगसार प्रवचन (भाग-१) २९९ पहचानता.... भगवान आत्मा, देह-देवल में आत्मा स्वयं सच्चिदानन्ददेव है। ये हड्डियाँ और चमड़ी मिट्टी और धूल है। भगवान आत्मा अन्दर देह-देवल में विराजमान है। अपने देव के स्वरूप को न जाने, तब तक मिथ्या तीर्थों में भटकता है। यह शब्द प्रयोग किया है न? ताम कुतिथिइ शब्द प्रयोग किया है पहला भाई! कुतीर्थ शब्द प्रयोग किया है, हाँ! फिर उसमें लेंगे। फिर इस देव को लेंगे। बाहर कहाँ तेरा भगवान है? यह बाद में (लेंगे) परन्तु पहले तो कुतीर्थ (लेंगे)। जिसे आत्मा का ज्ञान नहीं है, आत्मा देवस्वरूप है, उसका जहाँ भान नहीं है, वह जहाँ-तहाँ भटका करता है। नदी, सागर में स्नान करता है। है न? नदी और सागर में स्नान करने जाता है। वहाँ स्नान करने से कल्याण (होता है)? वहाँ बहत मछलियाँ स्नान करती हैं। समझ में आया? वहाँ नहाने जाओ, वहाँ अपना कल्याण होगा। शत्रुजय में नहाने जाओ, कल्याण होगा.... धूल में (नहीं होगा)। वहाँ तो बहुत मछलियाँ नहाती हैं, वहाँ नहाने से कल्याण होता होगा? जहाँ-तहाँ कुतीर्थ में रेत और पत्थर के ढेर करने से.... पत्थर लगाते हैं न? दो-दो, तीन-तीन, देवी-देवता और पर्वत से गिरने से, अग्नि में जलकर मरने से भला होगा.... ऐसा मानते हैं न? अभी किसी ने कहा कि एक व्यक्ति मरा है। सिर दिया है, हाँ! राज्य लेने के लिए, मर गया, ऐसे का ऐसा मूढ़ जीव। धूल में भी वहाँ राज्य नहीं मिलता। ऐसे कुतीर्थ में आत्मा के देव को जाने बिना पाप है, पुण्यलाभ नहीं। लोक मूढ़ता है। यह लोक मूढ़ता है। समझ में आया? जब तक यह जीव अज्ञानी है, मिथ्यादृष्टि है, संसार में आसक्त है, तब तक इसे इन्द्रियों के इष्ट विषयों की प्राप्ति की कामना रहती है और उसके बाधक कारण मिटाने की लालसा रहती है। ऐसा कहते हैं। मिथ्यामार्ग के उपदेशकों द्वारा जिस किसी की पूजा-भक्ति से और जहाँ-तहाँ जाने से विषयों की प्राप्ति में मदद होना जानते हैं, उसकी भक्ति पूजा करते हैं। देखो न! कुतीर्थ में कर्ता है या नहीं? यहाँ तो भगवान के नाम से करता है, अभी तो। मिथ्यादेवों की मिथ्या गुरुओं की, मिथ्या धर्मों की और मिथ्या तीर्थों की बहुत भक्ति करता है। नदी, सागर में स्नान करे,
SR No.009481
Book TitleYogsara Pravachan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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