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________________ २६२ गाथा-३५ मुमुक्षु - अर्थात् नहीं है और कहा है, ऐसा? उत्तर – नहीं, और कहा – ऐसा नहीं, वही कहते हैं । व्यवहार से कहा है अर्थात् कि आत्मा से भिन्न हैं और भेदरूप तत्त्व हैं; इस कारण उन्हें व्यवहार से नव तत्त्व आदि कहा गया है। आत्मा निश्चय से तो अभेद अखण्ड आनन्द की मूर्ति है। उसका आश्रय करना और उसकी दृष्टि करना, वह सम्यग्दर्शन है, वह निश्चय है परन्तु निश्चय में जिसका निषेध होता है, वह चीज़ क्या? समझ में आया? निश्चय आत्मा, निश्चय से तो आत्मा अनन्त शुद्ध गुण का पिण्ड एकरूप वस्तु है, वह सत्य और वह निश्चय है कि जिस आत्मा का अन्तर आश्रय करने से आत्मा को सम्यग्दर्शन और आत्मा का साक्षात्कार होता है, वह तो वस्तु निश्चय (हुई), परन्तु जब निश्चय ऐसा है, तब दूसरा व्यवहार है या नहीं? ऐसा। फिर वह भगवान ने कहा। कहा न? ववहारे जिण उत्तिया और जिण कहिआ छह द्रव्य। ये छह द्रव्य – छह प्रकार के पदार्थ हैं। धर्मास्ति, अधर्मास्ति, आकाश, काल, अनन्त परमाणु; पुद्गल और अनन्त जीव, ऐसे एक स्वरूप के निश्चय की अपेक्षा से ये सब छह द्रव्य भेदरूप अथवा अनेकरूप हुए, इसलिए उन्हें व्यवहार कहा गया है। समझ में आया? यह व्यवहार है। जिण उत्तिया वीतराग ने कहा है। यह छह द्रव्य, नौ पदार्थ या नव तत्त्व या सात तत्त्व इनमें से छाँटकर निकालना है तो एक। कौन? और किसमें से पृथक् पड़ता है ? अजीव, आस्रव, बन्ध से पृथक् पड़ता है और संवर, निर्जरा और मोक्ष तो भेदरूप दशा है। अभेदरूप त्रिकाल कौन? समझ में आया? समझ में नहीं आता? मुमुक्षु – स्पष्ट समझ में आये – ऐसा है। उत्तर – ऐसा न? यह कहते (हैं)। स्पष्ट समझ में आये ऐसा है। आत्मा निश्चय से तो एकरूप अभेद स्वभाव आत्मा का, वह उसका सत्व और निश्चय.... परन्तु उस निश्चय के अभेद में आना, तब कौन-सा व्यवहार निषेध में गया? व्यवहार का अभाव हुआ, वह व्यवहार कोई चीज है या नहीं? तो कहा कि ववहारे जिण उत्तिया वीतराग ने छह द्रव्य, नौ तत्त्व, सात तत्त्व पदार्थ आदि भगवान ने कहे हैं, वे व्यवहार से कहे हैं। व्यवहार से कहे का अर्थ कि भेदरूप; एकरूप में से भेदरूप और
SR No.009481
Book TitleYogsara Pravachan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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