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________________ योगसार प्रवचन (भाग-१) २४३ होती तो एक से है, परन्तु इससे होती है – ऐसा कहा जाता है। कहो, इसमें समझ में आया? इसमें बड़ा विवाद! लो! वे कहते हैं, नहीं; चौथे से सातवें तक तो व्यवहाररत्नत्रय ही होता है। यहाँ कहते हैं - व्यवहाररत्नत्रय बन्ध का कारण है; अकेला होवे तो उसे निरर्थक कहा जाता है; निमित्त भी नहीं, निमित्त भी नहीं। निमित्त तो, यहाँ उपादान आत्मा की श्रद्धा-ज्ञान-शान्ति स्व-आश्रय चैतन्य का अनुभव होवे तो वैसे भाव को निमित्त कहलाये न? वस्तु न होवे तो निमित्त किसे कहना? यहाँ निमित्त का फल कहा। अकेला निमित्त हो – दया, दान, व्रतादि; पूजा, भक्ति के परिणाम (होवें) तो स्वर्ग में जाए और यह पाप के परिणाम – हिंसा, झूठ, चोरी (होवे तो) नरक में जाए; इन दोनों को छोड़े तो शिवमहल में जाए। कहो, समझ में आया? दोनों कर्म, संसार और भ्रमण का कारण है। लो! इस बात में ठीक लिखते हैं । पुण्य कर्म.... है न? अपने पुण्य अधिकार में आता है न? साता वेदनीय, शुभ आयु, शुभ नाम और उच्च गोत्र है, उनका बन्ध प्राणीमात्र के प्रति दयाभाव..... दयाभाव से करता है। सातावेदनीय का बन्ध, शुभ आयु, शुभ नाम, उच्च गोत्र – यह अपने पुण्य अधिकार में आता है। यह दयाभाव-आहार, औषध, अभय और विद्यादान – यह चार प्रकार का दान दे तो सातावेदनीय आदि बाँधता है। सातावेदनीय, शुभ आयु यह....। श्रावक और मुनि का व्यवहारचारित्र.... यह श्रावक और मुनि का व्यवहारचारित्र भी पुण्य बन्ध का कारण है। इस बात में ठीक-ठीक स्पष्टीकरण किया है। निमित्त आवे, वहाँ फिर ज़रा गड़बड़ करते हैं । निमित्त मिलाना – ऐसा आता है। समझ में आया? देखो! यहाँ तो कहते हैं कि क्षमाभाव, सन्तोष, सन्तोषपूर्वक का आरम्भ, अल्प ममत्व, कोमलता, समभाव से कष्ट सहन, मन-वचन-काया का सरल कपटरहित वर्तन, पर गुण प्रशंसा, आत्मदोषों की निन्दा, निराभिमानता आदि शुभभावों से होता है। इन सब शुभभावों से होता है और शुभभाव, स्वर्ग का कारण है। देखो! इसमें तो क्षमा को रखा। क्षमा करता हूँ – ऐसा विकल्प है न? सब शुभभाव लिया है। समझ में आया? सन्तोष, सन्तोषपूर्वक आरम्भ अथवा अल्प आरम्भ, मन्दराग - यह सब शुभभाव हैं। इनसे सातावेदनीय आदि बँधते हैं। ऊपर शुभ आयु कहा न?
SR No.009481
Book TitleYogsara Pravachan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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