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________________ २०२ गाथा-२६ सिवलाहु चहद भगवान! शिव अर्थात् मोक्ष। परमानन्द की, आत्मा की दशा, आत्मा की पूर्ण शुद्ध आनन्ददशा का नाम मोक्ष है। ऐसी मोक्ष की दशा.... आत्मा में शुद्धता तो परिपूर्ण पड़ी है, उसकी वर्तमान दशा में परिपूर्ण शुद्ध और आनन्द की परिपूर्णता की प्राप्ति होना, उसका नाम मुक्ति है। यदि ऐसी मुक्ति का लाभ चाहता हो... यह शर्त । तो अणुदिणु सो अप्पा मुणहु। रात-दिन, भगवान शुद्ध परमात्मा निर्मलानन्द है, यह उसका ध्यान कर। आहा...हा... ! हैं ? कहो, निहालभाई! निहाल होना हो तो यह कर - ऐसा यहाँ कहते हैं। आहा...हा...! अरे... भगवान ! परन्तु तू बड़ा पड़ा है न प्रभु ! महा शुद्धस्वरूप है न! २६ वीं गाथा है न? यह गाथा है, इसमें अर्थ नहीं, यह तो ऊपर से अर्थ (होता है)। यह आत्मा अन्दर विराजमान है, वह तो महा शुद्ध पवित्र है। उसे आत्मा कहते हैं। शरीर, वाणी, मन तो मिट्टी-धूल, धूल है, वह तो राख है। अन्दर आठ कर्म जिन्हें कहते हैं, वह तो जड़ है और यह हिंसा, झूठ, चोरी, विषय-भोग वासना के भाव होते हैं, वह तो पाप है और दया, दान, भक्ति, व्रत, पूजा के भाव होते हैं, वह पुण्य है। ये दोनों भाव मलिन विकार है। दोनों विकार के पीछे भगवान शुद्ध चिदानन्द मूर्ति आत्मा है। आहा...हा...! पता नहीं, कभी सुना नहीं, कितना हूँ, कैसा हूँ ? यह सुना नहीं। समझ में आया? सर्वज्ञ परमेश्वर त्रिलोकनाथ तीर्थंकरदेव, जिन्हें एक सेकेण्ड के असंख्य भाग में तीन काल-तीन लोक ज्ञान में ज्ञात हुए, पूर्णानन्द का नाथ पूर्ण प्रगट हुआ, उनकी वाणी में आया कि अरे... आत्मा ! तू तो शुद्ध है न प्रभु! पहला 'शुद्ध' शब्द है। शुद्ध वीतराग निरंजन कर्मरहित है (- ऐसी) चीज है, उसका मनन कर। राग का मनन, पुण्य का, व्यवहार का मनन (छोड़) ! समझ में आया? यदि तुझे मुक्ति-मोक्ष का लाभ चाहिए हो तो.... भटकने का लाभ अनन्त काल से करता है, उसमें कोई नयी बात नहीं है। चौरासी के चक्कर अनन्त काल से खाया ही करता है। तुझे आत्मा की शान्ति की पूर्णता की प्राप्ति – ऐसी जो मुक्ति, ऐसे शिव का-मोक्ष का लाभ यदि चाहिए हो तो इस शुद्ध का मनन कर। परमानन्द की मूर्ति प्रभु, पुण्य-पाप से रहित है। कर्म, शरीर से रहित है; अपने अनन्त पवित्र गुणों से सहित है – ऐसे भगवान का तू मनन कर। भाई! इस राग और पुण्य
SR No.009481
Book TitleYogsara Pravachan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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