SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 200
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०० गाथा-२५ अभी सम्यक्त्व किसे कहना? किंचित् आधार, कोई आधार (लेना चाहते हैं) निरालम्बी निरपेक्ष चीज को सापेक्षता से होना मानना, यह बात मिथ्या है – ऐसा यहाँ कहते हैं। भले व्यवहार हो, होवे तो क्या है ? __भगवान आत्मा.... सीधा आत्मा हूँ, उस पर तो बात है। जाना नहीं, सीधा भगवान ज्ञायकस्वरूप परमात्मा, उसे किसी राग और निमित्त, गुरु और किसी शास्त्र, किसी क्षेत्र, किसी आधार की, किसी की आवश्यकता नहीं है - वह ऐसा निरालम्बी भगवान पड़ा है। उसकी अन्तर में श्रद्धा और ज्ञान बिना (सब व्यर्थ है)। उसकी श्रद्धा और ज्ञान की क्या कीमत? तीन लोक-तीन काल में उसके जैसा कोई हितकर है ही नहीं। समझ में आया? और राग के कण को भी लाभदायक मानना, पर के आश्रय से कुछ कल्याण होगा, धीरेधीरे कुछ करेंगे, पर का कुछ करेंगे तो पायेंगे.... करेंगे, राग करेंगे तो पायेंगे - ऐसी जो मिथ्या श्रद्धा, राग करेंगे तो आत्मा पायेंगे, ऐसी मिथ्याश्रद्धा के अतिरिक्त जगत् में कोई बुरा करनेवाला नहीं है। आहा...हा...! कहो, समझ में आया? आहा...हा...! देखो! सम्यग्दर्शन को शुद्ध पालन करनेवाला जीव, पाँच अहिंसा आदि व्रतों से रहित होने पर भी मरकर नारकी पशु, नपुंसक, स्त्री, नीच कुल का, अंगरहित, अल्प आयुवाला या दरिद्री नहीं होता.... लो! अकेले सम्यक्त्वसहित मरे... पंच महाव्रत बिना... तो भी वह इतने में – हल्के में नहीं जाता। हल्की गति में उत्पन्न नहीं होता – ऐसा कहते हैं। स्वरूप का भान हुआ, उसकी गति हल्की नहीं होती। आहा...हा...! मोक्ष के पंथ में पड़ा, उसे बाहर में हल्की गति नहीं होती – ऐसा। समझ में आया? यदि सम्यक्त्व होने से पहले नरक, तिर्यंच या अल्प आयुष्य बाँधा हो तो पहले नरक में....जाता है। यह तो ठीक। समझ में आया? ऐसी उसकी व्याख्या की है। लो! चउरासी लक्खह फिरिउ पर सम्मत्त ण लध्धु। शुद्ध आत्मा का मनन ही मोक्षमार्ग है सधु सच्चेयणु बुद्ध जिणु केवलणाणसहाउ। सो अप्पा अणुदिणु मुणहु जइ चाहउ सिवलाहु॥२६॥
SR No.009481
Book TitleYogsara Pravachan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy