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________________ गाथा- २ हों और उनके लड़कों का विवाह होता हो तो भले गरीब हो, भले भीख माँगता हो तो भी उसकी नात में वह जीमने जाता है । गन्दे व्यक्ति के घर में बँगला हो तो वहाँ जीमने साथ जाता है ? है ? १४ मुमुक्षु : परन्तु इसे जातिभोज में निमन्त्रण नहीं होता । उत्तर : इसे उस प्रकार का निमन्त्रण नहीं होता और उसे तो बिना (निमन्त्रण) हमारी जाति है, दशा श्रीमाली का जातिभोज है, इसलिए हम जायेंगे और वह भी फिर चाहे जैसा उसका लड़का हो, खजूर बँटती हो, तब वह दशा श्रीमाली का लड़का हो वह मण्डप में घुस जाता है और वह (गन्दा व्यक्ति) हो, वह दरवाजे के पास खड़ा रहता है, खजूर लेनी हो तो वहाँ खड़ा रहे, अन्दर नहीं घुसे, उसकी हद इतनी होती है। समझ में आया ? यह सब देखा है या नहीं ? यह सब हमने तो देखा है, सबकी बातें (देखी है) । हाँ, वह बनिया गरीब हो तो भी अन्दर चला जाता । हमारी जाति का लड़का है, दूसरे को तो जाति बाहर हो इसलिए खड़ा रहता है। इसी प्रकार सिद्ध परमात्मा को यहाँ कहते हैं, प्रभु! मैं तो आपका नातेदार हूँ, हाँ! इस थोड़े काल में प्रभु आपके साथ अनुभव करने, वहाँ आनेवाला हूँ। समझ में आया ? यहाँ अरहन्त के स्वरूप को पहले जानता है, तब उसे आत्मा के द्रव्य के साथ मिलाता है कि मैं ऐसा ? यह भगवान ऐसे और मैं ऐसा क्यों ? यह अल्प पर्याय क्यों ? मेरी दशा में अल्प अवस्था क्यों ? यह राग क्यों ? अन्दर जाता है, दृष्टि करता है, वहाँ पूर्ण स्वरूप है - ऐसी प्रतीति होने पर उसे क्षायिक समकित होता है । क्षायिक हुआ तो केवलज्ञान लेकर ही रहेगा। समझ में आया ? 'घाइचउक्कहं किउ' देखो, चारघातिया कर्म का 'विलउ' फिर भाषा कैसी है ? विलय । समझ में आया ? विशेष लय । भगवान अरहन्त में (घातिकर्म का) नाश कर डाला है।‘अणंत चउक्कपदिट्टु' अनन्त चतुष्टय का लाभ । 'दिसु' है न अन्दर ?' प्रदिसु' प्रदेश में प्राप्त किया। चार घातिया का ध्यान द्वारा भगवान ने नाश किया और चार को प्राप्त किया। चार का नाश और चार की प्राप्ति । अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त आनन्द और अनन्त वीर्य - ऐसी चार दशा को अरहन्त भगवान ने प्राप्त किया, उन्हें अरहन्त कहते हैं। समझ में आया ? भगवान जाने अरहन्त कैसे होंगे ? णमो अरहन्ताणं । मर जाता
SR No.009481
Book TitleYogsara Pravachan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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