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________________ गृहस्थ भी निर्वाण मार्ग पर चल सकता है गिहिवावार परट्ठिआ हेयाहेउ मुणंति। अणुदिणु झायहि देउ जिणु लहु णिव्वाणु लहंति॥ १८॥ गृहकार्य करते हुए, हेयाहेय का ज्ञान। ध्यावे सदा जिनेश पद, शीघ्र लहे निर्वाण॥ अन्वयार्थ – (गिहिवावार परट्ठिया) जो गृहस्थ के व्यापार में लगे हुए हैं (हेयाहेउ मुणंति) तथा हेय उपादेय को (त्यागने योग्य व ग्रहण करने योग्य) को जानते हैं (अणुदिणु जिणु देउ झायहि ) तथा रात-दिन जिनेन्द्रदेव का ध्यान करते हैं (लहु णिव्वाणु लहंति ) वे भी शीघ्र निर्वाण को पाते हैं। वीर संवत २४९२, ज्येष्ठ कृष्ण १०, गाथा १८ से १९ सोमवार, दिनाङ्क १३-०६-१९६६ प्रवचन नं.७ १८ वीं गाथा । देखो! इस गाथा (में ऐसा कहते हैं) – गृहस्थाश्रम में भी अनुभव हो सकता है। समझ में आया? उसकी यह गाथा है। देखो ! गृहस्थ भी निर्वाण मार्ग पर चल सकता है। गृहस्थ में रहनेवाला जीव, मोक्ष के मार्ग पर चल सकता है। ऐसा नहीं है कि साधु ही मोक्षमार्ग में चल सकता है, यह बात यहाँ पर मुख्य स्थापित करने को यह बात करते हैं। देखो! गिहिवावार परट्ठिआ हेयाहेउ मुणंति। अणुदिणु झायहि देउ जिणु लहु णिव्वाणु लहंति॥ १८॥ क्या कहते हैं ? गृहस्थ में – व्यापार-धन्धे में लगा होने पर भी, संसार में
SR No.009481
Book TitleYogsara Pravachan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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