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________________ (८) खोते थे। एक दिन अपनी बाल-सुलभ क्रीड़ाओं से माता-पिता, परिजनों और पुरजनों को आनन्द देने वाले बालक वर्द्धमान अन्य राजकुमारों के साथ क्रीड़ावन में खेल रहे थे। खेल ही खेल में अन्य बालकों के साथ वर्द्धमान भी एक वृक्ष पर चढ़ गए। इतने में ही एक भयंकर काला सर्प आकर वृक्ष से लिपट गया और क्रोधावेश में वीरों को भी कम्पित कर देने वाली फुकार करने लगा। विषम स्थिति में अपने को पाकर अन्य बालक तो भय से कांपने लगे पर धीर-वीर बालक वर्द्धमान को वह भयंकर नागराज विचलित न कर सका। महावीर को अपनी ओर निर्भय और निःशंक आता देख वह नागराज निर्मद होकर स्वयं अपने रास्ते चलता बना। इसीप्रकार एक बार एक हाथी मदोन्मत्त हो गया और गजशाला के स्तम्भ को तोड़कर नगर में विप्लव मचाने लगा। सारे नगर में खलबली मच गई। सभी लोग घबड़ा कर यहाँ-वहाँ भागने लगे, पर राजकुमार वर्द्धमान ने अपना धैर्य नहीं खोया तथा । शक्ति और युक्ति से शीघ्र ही गजराज पर काबू पा लिया। राजकुमार वर्द्धमान की वीरता व धैर्य की चर्चा नगर में सर्वत्र होने लगी। वे प्रतिभासम्पन्न राजकुमार थे। बड़ी से बड़ी समस्याओं का समाधान चुटकियों में कर दिया करते थे। वे शान्त-प्रकृति के तो थे ही, युवावस्था में प्रवेश करते ही उनकी गम्भीरता और बढ़ गई। वे अत्यन्त एकान्तप्रिय हो गये। वे निरन्तर चिन्तवन में ही लगे रहते थे और गूढ़ तत्त्वचर्चाएँ किया करते थे। तत्त्व सम्बन्धी बड़ी से बड़ी शंकाएँ तत्त्वजिज्ञासु उनसे करते और वे बातों ही बातों में उनका समाधान कर देते थे। बहुत-सी शंकाओं का समाधान तो उनकी सौम्य आकृति ही
SR No.009479
Book TitleTirthankar Bhagawan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages25
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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