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________________ (२१) सहनशील बनना होगा। सहनशीलता सहिष्णुता का ही पर्याय है। तीर्थंकर भगवान महावीर ने प्रत्येक वस्तु की पूर्ण स्वतंत्र सत्ता स्वीकार की है और यह भी स्पष्ट किया है कि प्रत्येक वस्तु स्वयं परिणमनशील है। उसके परिणमन में पर-पदार्थ का कोई हस्तक्षेप नहीं है। यहां तक कि परमपिता परमेश्वर (भगवान्) भी उसकी सत्ता का कर्ता-हर्ता नहीं है। जन-जन की ही नहीं, अपितु कण-कण की स्वतंत्र सत्ता की उद्घोषणा तीर्थंकर महावीर की वाणी में हुई। दूसरों के परिणमन या कार्य में हस्तक्षेप करने की भावना ही मिथ्या, निष्फल और दुःख का कारण है; क्योंकि सब जीवों का जीवन-मरण, सुख-दुःख स्वयंकृत व स्वयंकृत कर्म का फल है । एक को दूसरे के दुःख-सुख, जीवन-मरण का कर्ता मानना अज्ञान है। सो ही कहा है - (वसन्ततिलका) सर्वं सदैव नियतं भवति स्वकीय कर्मोदयान्मरणजीवित दुःख सौख्यम्। अज्ञानमेतदिह यत्तुः परः परस्य, कुर्यात्पुमान्मरण जीवित दुःख सौख्यम्।। (हरिगीत) जीवन-मरण अर दुक्ख-सुख सब प्राणियों के सदा ही। अपने कर्म के उदय के अनुसार ही हों नियम से ।। करे कोई किसी के जीवन-मरण अर दुक्ख-सुख। विविध भूलों से भरी यह मान्यता अज्ञान है।। १. आचार्य अमृतचन्द्र : समयसार कलश, १६८
SR No.009479
Book TitleTirthankar Bhagawan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages25
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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