SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्रोध, मान, माया, लोभ, राग-द्वेष- कलह, आळ-चाडीचुगली, कपट, मिथ्यात्व - ऐसे समकितपूर्वक बारह व्रत, संलेखणा सहित्त अठारह पापस्थानक, पच्चीस मिथ्यात्व, चौदह स्थान के सम्मूर्च्छिम मनुष्य की विराधना संबंधी अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार, अनाचार, जाने, अनजाने, मन, वचन, काया से सेवन किये हो, सेवन करवाये हो, सेवते हुए के प्रति अनुमोदना की हो तो अरिहंत, अनंत सिद्ध भगवंतों की साक्षी सह तस्स मिच्छामि दुक्कडं ! श्री गुरुदेव की आज्ञा से ! श्री सीमंधरस्वामी की आज्ञा से ! श्री चत्तारि मंगलं, अरिहंता मंगलं, सिद्धा मंगलं, साहू मंगलं, केवल पणतो धम्मो मंगलं, चत्तारि लोगुत्तमा, अरिहंता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा, साहू लोगुत्तमा, केवलि पण्णतो धम्मो लोगुत्तमा, चत्तारि शरणं पवज्जामि, अरिहंता शरणं पवज्जामि, सिद्धा शरणं पवज्जामि, साहू शरणं पवज्जामि, केवल पण्णत्तो धम्मो शरणं पवज्जामि, चार शरणां, दुःख हरणा, अवर शरण नहि कोइ । जो भव्य प्राणी आदरे, अक्षय अविचल पद होवे। अंगुठे में अमृत बसे, लब्धि तणां भंडार, गुरु गौतम को समरिए, मनवांछित फल दातार । भावे भावना भावीओ, भावे दीजे दान, भावे धर्म आराधीए, भावे केवलज्ञान । बोलो श्री महावीरस्वामी भगवान की जय! जैनशासन देव की जय! बोलो भाई सभी संतों की जय ! सुबह उठकर...२३
SR No.009477
Book TitleSukhi hone ki Chabi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh Mohanlal Sheth
PublisherShailesh Punamchand Shah
Publication Year
Total Pages59
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy