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________________ अर्थात् स्वात्मानुभूति विभावरहित आत्मा की अर्थात् शुद्धात्मा की होने से उसे निर्विकल्प स्वात्मानुभूति कहा जाता है। अर्थात् स्वात्मानुभूति के काल में मनोयोग होने पर भी तब मन भी अतीन्द्रियरूप से परिणमित होने से उसे निर्विकल्प स्वात्मानुभूति कहा जाता है। अब हम ध्यान के विषय में थोड़ा-सा बताते हैं। किसी भी वस्तु-व्यक्ति-परिस्थिति आदि पर मन का एकाग्रतापूर्वक चिंतन ध्यान कहलाता है। मन का सम्यग्दर्शन के लिए बहुत ही महत्त्व है अर्थात् सम्यग्दर्शन का विषय भी मन से ही चिंतन किया जाता है और अतीन्द्रिय स्वात्मानुभूति के काल में भी वह भावमन ही अतीन्द्रिय ज्ञानरूप परिणमता है। इससे मन किस विषय पर चिंतन करता है अथवा मन किन विषयों में एकाग्रता करता है इस पर ही बंध और मोक्ष का आधार है, अर्थात् मन ही बंध और मोक्ष का कारण है। कर्म, मन-वचन-काया से बँधते हैं, उनमें सबसे कम कर्म काया से बँधते हैं क्योंकि काया की शक्ति की एक सीमा है, जबकि वचन से काया की अपेक्षा अधिक कर्मों का बंध होता है और सबसे अधिक कर्मों का बंध मन से ही होता है क्योंकि मन को कोई सीमा रोकती ही नहीं, इसलिए मन का बंध और मोक्ष में विशिष्ट महत्त्व है । इसीलिए सर्व साधना का आधार मन पर ही है और मन किस विषय पर चिंतन करता है, यह सुखी होने की चाबी : १५
SR No.009477
Book TitleSukhi hone ki Chabi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh Mohanlal Sheth
PublisherShailesh Punamchand Shah
Publication Year
Total Pages59
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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