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________________ (द्रव्यात्मा) ध्यान में आता है अर्थात् ज्ञान में विकल्परूप से आता है, उसे भावभासन कहते हैं और उस शुद्धात्मा की अनुभूति होते ही जीव को सम्यग्दर्शन होता है अर्थात् वह जीव उस शुद्ध आत्मरूप में (स्वरूप में स्वभाव में) 'मैंपना' (एकत्वपना= स्वपना) करते ही, जो कि पहले शरीर में 'मैंपना' करता था. उस जीव को सम्यग्दर्शन होता है: यह विधि है सम्यग्दर्शन की, अर्थात् 'जो जीव, राग-द्वेषरूप परिणमा होने पर भी, मात्र शुद्धात्मा में (द्रव्यात्मा में स्वभाव में) ही 'मैंपना' (एकत्व) करता है और उसका ही अनुभव करता है, वही जीव सम्यग्दृष्टि है अर्थात् यही सम्यग्दर्शन की विधि है।' दूसरा दृष्टांत -जैसे दर्पण में अलग-अलग प्रकार के बहुत प्रतिबिंब होते हैं, परंतु उन प्रतिबिंबों को गौण करते ही स्वच्छ दर्पण दृष्टि में आता है; इसी प्रकार आत्मा में - ज्ञान में जो ज्ञेय होते हैं, उन ज्ञेयों को गौण करते ही निर्विकल्परूप ज्ञान का अर्थात् शुद्धात्मा का अनुभव होता है; यही सम्यग्दर्शन की विधि है। इसी विधि से अशुद्ध आत्मा में भी, सिद्ध समान शुद्धात्मा का निर्णय करना और उसमें ही 'मैंपना' करने से सम्यग्दर्शन प्रगट होता है। आत्मा में भेदज्ञान किस प्रकार करना? उसका उत्तर ऐसा है कि प्रथम तो प्रगट में आत्मा के लक्षण से अर्थात् ज्ञानरूप १२ * सुखी होने की चाबी
SR No.009477
Book TitleSukhi hone ki Chabi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh Mohanlal Sheth
PublisherShailesh Punamchand Shah
Publication Year
Total Pages59
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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