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________________ संसारी को सिद्ध जैसा कहा, वह किस अपेक्षा से? उत्तर : वह शुद्ध द्रव्यार्थिकनय की अपेक्षा से। जैसे कि संसारी जीव, शरीरस्थ होने पर भी, उनका आत्मा एक जीवत्वरूप पारिणामिक-भावरूप होता है; वह जीवत्वरूप भाव छद्मस्थ को (अशुद्ध द्रव्यार्थिकनय से) अशुद्ध होता है और उसके कषायात्मा इत्यादि आठ प्रकार भी कहे हैं। वह अशुद्ध जीवत्वभाव अर्थात् अशुद्धरूप से परिणमित आत्मा में से अशुद्धि को (विभावभाव को) गौण करते ही, जो जीवत्वरूप भाव शेष रहता है, उसे ही परमपारिणामिकभाव, शुद्धभाव, शुद्धात्मा, कारणपरमात्मा, सिद्धसदृशभाव, स्वभावभाव इत्यादि अनेक नामों से पहचाना जाता है और उस भाव की अपेक्षा से ही 'सर्व जीव स्वभाव से ही सिद्धसमान हैं' ऐसा कहा जाता है। यही बात श्री भगवतीजी (भगवई विवाहपन्नत्ति) सूत्र में १२वें शतक में उद्देसों १० में कही गयी है - "हे भगवान! आत्मा कितने प्रकार के कहे गये हैं? हे गौतम! आठ प्रकार के। वे द्रव्यात्मा, कषायात्मा, योगात्मा, उपयोगात्मा, ज्ञानात्मा, दर्शनात्मा, चारित्रात्मा और वीर्यात्मा हैं। हे भगवान! जिसे द्रव्यात्मा होता है, उसे क्या कषायात्मा होता है और कषायात्मा होता है, उसे क्या द्रव्यात्मा होता है? हे गौतम! जिसे द्रव्यात्मा होता है, उसे कषायात्मा कदाचित् होता है, कदाचित् नहीं भी होता, परंतु जिसे कषायात्मा होता है, उसे तो अवश्य द्रव्यात्मा होता है। हे भगवान्! जिसे द्रव्यात्मा होता है उसे योगात्मा १० सुखी होने की चाबी
SR No.009477
Book TitleSukhi hone ki Chabi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh Mohanlal Sheth
PublisherShailesh Punamchand Shah
Publication Year
Total Pages59
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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