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________________ अथवा नवतत्त्व की कही जानेवाली श्रद्धारूप सम्यग्दर्शन है, वह तो मात्र व्यावहारिक (उपचाररूप) सम्यग्दर्शन भी हो सकता है. जो कि मोक्षमार्ग के लिए कार्यकारी नहीं गिना जाता, परंतु स्वानुभूति (स्वात्मानुभूति) सहित का सम्यग्दर्शन अर्थात् भेदज्ञानसहित का सम्यग्दर्शन ही निश्चय सम्यग्दर्शन कहलाता है और उसके बिना मोक्षमार्ग में प्रवेश भी शक्य नहीं है। इसलिए यहाँ बताया गया सम्यग्दर्शन, वह निश्चय सम्यग्दर्शन समझना। प्रथम, हम सम्यग्दर्शन का स्वरूप समझेंगे। सम्यग्दर्शन अर्थात् देव-गुरु-धर्म का स्वरूप जैसा है, वैसा समझना, अन्यथा नहीं। और जहाँ तक कोई भी आत्मा अपना यथार्थ स्वरूप नहीं समझता अर्थात् स्व की अनुभूति नहीं करता, तब तक देव-गुरु-धर्म का यथार्थ स्वरूप भी नहीं जानता, परंतु वह मात्र देव-गुरु-धर्म के बाह्य स्वरूप/वेष की ही श्रद्धा करता है और वह उसे ही सम्यग्दर्शन समझता है; परंतु वैसी देव-गुरु-धर्म की बाह्य स्वरूप की/वेष की ही श्रद्धा, यथार्थ श्रद्धा नहीं है और इसलिए वह निश्चय सम्यग्दर्शन का लक्षण नहीं है, क्योंकि जो एक को (आत्मा को) जानता है, वह सर्व को (जीव-अजीव इत्यादि नव तत्त्वों को और देव-गुरु-धर्म के यथार्थ स्वरूप को) जानता है; अन्यथा नहीं। क्योंकि वह व्यवहारनय का कथन है अर्थात् एक आत्मा को जानते ही वह जीव सच्चे देवतत्त्व का आंशिक अनुभव करता है और इसलिए ८* सुखी होने की चाबी
SR No.009477
Book TitleSukhi hone ki Chabi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh Mohanlal Sheth
PublisherShailesh Punamchand Shah
Publication Year
Total Pages59
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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