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________________ जैनदर्शन के परिप्रेक्ष्य में । १६ पूर्णकर सूख जाता है। यदि हरे-भरे पौधों को काट दिया जाय तो अनाज भी सही रूप में पैदा नहीं होगा । अतः उसका खेत में ही खड़े-खड़े ही सूख जाना आवश्यक है। अतः अनाज, दालें व तिलहन पूर्णत: अहिंसक आहार हैं। यद्यपि गेहूँ आदि पूर्णत: अजीव है; तथापि उनको बोने पर वे उगते हैं, पर चावल उनसे भी श्रेष्ठ है; क्योंकि छिलका अलग हो जाने से बोने पर उगते भी नहीं हैं। यही कारण है कि उनका उपयोग भगवान की पूजन में भी किया जाता है। जीव-जन्तुओं से रहित बिना घुना अनाज, चावल, दालें एवं तिलहन ही सर्वोत्तम शाकाहार हैं। इन्हीं में मेवा - सूखे फलों (ड्राईफ्रूट्स ) को भी समझना चाहिए। इसके बाद वृक्ष की डाली पर ही पके हुए और पक कर स्वयं गिरे हुए फलों का क्रम आता है; क्योंकि उनके ग्रहण में भी किसी भी जीव-जन्तु को कोई पीड़ा नहीं पहुँचती है। यहाँ एक प्रश्न संभव है कि फल तो गेहूँ आदि के समान ही निरापद हैं, इन्हें उसके बाद के क्रम में क्यों रखा है। पके हुए फल सरस होने से गीले होते हैं। अत: उनमें त्रस जीवों के शीघ्र उत्पन्न होने की संभावना रहती है। यही कारण है कि उन्हें अनाज के समान निरापद आहार स्वीकार नहीं किया गया है। इसके बाद सागभाजी का नम्बर आता है; क्योंकि साग-भाजी तो निश्चितरूप से हरी ही होती है । उसे सचित्त अवस्था में ही पेड़-पौधों से तोड़ा जाता है। अप्रतिष्ठित वनस्पति होने से भले ही उनमें जीव न हों, पर उनके तोड़ने से उस पेड़ या पौधे को पीड़ा तो पहुँचती ही है। पेड़-पौधों की जड़, जिसे कन्दमूल कहते हैं, खाने का पूर्णत: निषेध है; क्योंकि जड़मूल के समाप्त हो जाने पर तो पेड़-पौधे का सर्वनाश अनिवार्य है । कन्दमूल साधारण वनस्पति होने से उसमें अनन्त जीव
SR No.009474
Book TitleShakahar Jain Darshan ke Pariprekshya me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2009
Total Pages28
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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