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________________ जैनदर्शन के परिप्रेक्ष्य में ! १५ प्रकार की सुरक्षा की व्यवस्था की जाती है। यदि गाय से दूध प्राप्त न किया जाय तो उसके भोजन-पानी की व्यवस्था भी कौन करेगा ? गाय की बात तो ठीक, पर बछड़े के साथ तो अन्याय है ही; क्योंकि उसका अधिकार तो छीना ही गया है । ऐसी बात भी नहीं है, एक तो उसके बदले में उसे अन्य उपयुक्त साद्य सामग्री खिलाई जाती है, दूसरे गाय को पौष्टिक आहार देकर अतिरिक्त दुग्ध उत्पादन किया जाता है। उस अतिरिक्त दूध को सज्जन लोग प्राप्त करते हैं, बछड़े का हिस्सा तो बछड़े को प्राप्त होता ही है। यदि वह गाय जंगल में रहती और घास - पत्ती पर ही निर्भर रहती तो उसके एकाध किलो दूध ही होता; पर जब हम उसे खली आदि पौष्टिक पदार्थ खिलाते हैं तो वही गाय चार पाँच किलो दूध देती है। बछड़े को तो उसका एकाध किलो दूध मिल ही जाता है, अतिरिक्त दूध ही सज्जन लोग प्राप्त करते हैं। इसप्रकार यह तो एकप्रकार से आदान-प्रदान है, इसमें अन्याय भी कहाँ हैं ? यदि इसप्रकार अन्याय की कल्पना करेंगे तो फिर इसप्रकार का आदान-प्रदान तो मनुष्य जाति में भी परस्पर होता ही है, हम दूसरों को उचित पारिश्रमिक देकर उनकी सेवायें प्राप्त करते ही हैं। किसी बेकार व्यक्ति को उचित पारिश्रमिक देकर रोजगार देने को तो लोक में परोपकार कहा जाता है; शोषण नहीं, अन्याय भी नहीं । इसीप्रकार गाय और बछड़े की सर्वप्रकार से उचित सेवा के बदले में दूध प्राप्त करने को भी परस्पर उपकार के अर्थ में ही देखा जाना चाहिए, अन्याय या शोषण के अर्थ में नहीं। भारतीय संस्कृति में गाय को तो माँ जैसा सम्मान प्राप्त है। अतः अंडे की तुलना दूध से करना असंगत तो है ही, अज्ञान का सूचक भी है। इस पर भी यदि कोई कहे कि जिसप्रकारं दूध न निकले तो गाय को
SR No.009474
Book TitleShakahar Jain Darshan ke Pariprekshya me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2009
Total Pages28
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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