SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समयसार अनुशीलन 270 भी ऐसा ही हुआ है; क्योंकि कलशटीकाकार पाण्डे राजमलजी इस छन्द (कलश) का भाव इसप्रकार व्यक्त करते हैं - "जिसप्रकार पानी का शीत, स्वच्छ और द्रवत्व स्वभाव है; उस स्वभाव से वह कभी च्युत होता है, अपने स्वभाव को छोड़ता है; उसीप्रकार जीवद्रव्य का स्वभाव केवलज्ञान, केवलदर्शन, अतीन्द्रिय सुख इत्यादि अनन्त गुणस्वरूप है और वह उससे अनादिकाल से भ्रष्ट हुआ है, विभावरूप परिणमा है। ___ जिसप्रकार पानी अपने स्वाद से भ्रष्ट हुआ नाना वृक्षरूप परिणमता है; उंसीप्रकार जीवद्रव्य अपने शुद्धस्वरूप से भ्रष्ट हुआ नानाप्रकार चतुर्गति पर्यायरूप अपने को आस्वादता है। जिसप्रकार पानी अपने स्वरूप से भ्रष्ट होता है और काल का निमित्त पाकर पुनः जलरूप होता है, नीचे के मार्ग से ढलकता हुआ पुंजरूप भी होता है; उसीप्रकार जीवद्रव्य अनादि से स्वरूप से भ्रष्ट है। शुद्धस्वरूप लक्षण सम्यक्त्व गुण के प्रगट होने पर मुक्त होता है। - ऐसा द्रव्य का परिणाम है।" नाटक समयसार का छन्द उक्त भाव का ही अनुसरण कर रहा है। निजौघ से च्युत पानी का ढालवाले मार्ग से दुबारा उसी समूह में आ मिलना सहजभाव से सबको स्वीकृत नहीं होता। लोगों को ऐसा लगता है कि ऐसा कैसे हो सकता है। क्योंकि पानी का स्वभाव तो नीचे को बहना ही है। तथा पानी का स्वभाव ही जब नीचे बहना है तो फिर पानी का निजौष से च्युत होकर नीचे बहना विभाव कैसे माना जा सकता है? इसप्रकार के चिन्तन से संगति बिठाने के लिए यह कहा गया है कि जब जल निजौघ से च्युत होता है तो वह ऐड़े-तेड़े, ऊबड़-खाबड़ मार्ग में भटक जाता है, नानाप्रकार की पृथ्वी और नानाप्रकार की वनस्पतियों में विलीन-सा ही हो जाता है; किन्तु उसी जल को जब ढालवाला नीचा मार्ग मिल जाता है तो वह स्वाभाविकरूप से शान्त होकर सहजभाव से बहने लगता है। इसीप्रकार यह भगवान आत्मा भी अन्तर्मुख सहज स्वाभाविक परिणाम से च्युत होकर भटक जाता है, नानाप्रकार के ज्ञेयों में उलझकर रह जाता है, विभावभावरूप
SR No.009472
Book TitleSamaysara Anushilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1996
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy