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________________ 363 गाथा १५७-१५९ से तिरोभूत होता है। इसप्रकार मोक्ष के कारणभावों को कर्म तिरोभूत करता है, इसलिये उसका निषेध किया गया है।" उक्त संदर्भ में स्वामीजी के विचार भी द्रष्टव्य हैं, जो इसप्रकार हैं - "देखो, यहाँ जो मिथ्यात्व कर्ममल की चर्चा है, वह भावमिथ्यात्व की बात है, 'शुभभाव धर्म है' - ऐसी विपरीत मान्यतारूप मिथ्यात्व की बात है। इस मिथ्यात्वरूप मैल से व्याप्त होने से त्रिकाली चैतन्यस्वरूप भगवान आत्मा का सम्यक्त्व तिरोभूत हो जाता है, जिसे टीका में ज्ञान का सम्यक्त्व कहा है। ज्ञान का सम्यक्त्व कहो या आत्मा का सम्यक्त्व कहो - एक ही बात है। इसका अर्थ है त्रिकाली शुद्ध चैतन्यमूर्ति भगवान आत्मा की अनुभूति या प्रतीति, वह प्रतीति मोक्ष के कारणरूप आत्मा का निज स्वभाव है।' देखो, यहाँ ज्ञानानन्दस्वभावी भगवान चैतन्यस्वरूप निज आत्मा के ज्ञान को ही 'ज्ञान का ज्ञान' कहा है। इसप्रकार यहाँ सम्पूर्ण आत्मा को 'ज्ञान' शब्द से सम्बोधित किया है। ज्ञान का ज्ञान अर्थात् अखण्ड एकरूप त्रिकाली चैतन्यमय ज्ञानानन्दस्वभावी आत्मा का ज्ञान । चैतन्यमय आत्मा का यह ज्ञान ही मोक्ष का कारण है। यहाँ शास्त्रज्ञानरूप पराश्रित ज्ञान की बात नहीं है। यह तो उस आत्मज्ञान की बात है, जिसमें संवर, निर्जरा व मोक्ष की पर्याय भी नहीं है तथा जो शुद्ध चैतन्यमय नित्यानन्दस्वरूप अनंत गुण का एकरूप है - ऐसा आत्मज्ञान ही मोक्ष के कारणरूप स्वभाववाला है। ऐसा जो मोक्ष का कारणरूप आत्मस्वभाव है, वही ज्ञान का ज्ञान है। वह ज्ञान परभावरूप अज्ञानरूपी कर्ममल से ढक जाता है।शुभभाव को धर्म मानना ही अज्ञान है और वह अज्ञान ही मैल है। ऐसे अज्ञानरूपी मैल से व्याप्त होने से आत्मा का ज्ञान तिरोभूत हो जाता है, सम्यग्ज्ञान उत्पन्न नहीं होता। अब ज्ञान के चारित्र यानि आत्मा के चारित्र की बात कहते हैं - 'ज्ञान का चारित्र' जो कि मोक्ष का कारणरूप स्वभाव है, वह परभावस्वरूप कषाय नामक कर्ममल के द्वारा व्याप्त होने से तिरोभूत होता है, जैसे कि १. प्रवचनरत्नाकर, भाग ५, पृष्ठ १४४ २. वही, पृष्ठ १४४-१४५
SR No.009472
Book TitleSamaysara Anushilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1996
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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