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________________ समयसार गाथा १२१ से १२५ ११६ से १२० गाथा तक पाँच गाथाओं में जो बात पुद्गल के बारे में कही गई है, वही बात आगामी पाँच गाथाओं में जीव के बारे में कही जा रही है; जो इसप्रकार है - ण सयं बद्धो कम्मे ण सयं परिणमदि कोहमादीहिं । जइ एस तुझ जीवो अप्परिणामी तदा होदि ॥ १२१॥ अपरिणमंतम्हि सयं जीवे कोहादिएहिं भावेहिं । संसारस्स अभावो पसजदे संखसमओ वा ॥१२२॥ पोग्गलकम्मं कोहो जीवं परिणामएदि कोहत्तं । तं सयमपरिणमंतं कहं णु परिणामयदि कोहो ॥१२३॥ अह सयमप्या परिणमदि कोहभावेण एस दे बुद्धी । कोहो परिणामयदे जीवं कोहत्तमिदि मिच्छा ॥१२४॥ कोहुवजुत्तो कोहो माणवजुत्तो माणमेवादा । माउवजुत्तो माया लोहुवजुत्तो हवदि लोहो ॥ १२५॥ यदि स्वयं ही ना बंधे अर क्रोधादिमय परिणत न हो। तो अपरिणामी सिद्ध होगा जीव तेरे मत विर्षे ॥१२१॥ स्वयं ही क्रोधादि में यदि जीव ना हो परिणमित । तो सिद्ध होगा सांख्यमत संसार की हो नास्ती ॥१२२॥ यदि परिणमावे कर्मजड़ क्रोधादि में इस जीव को। पर परिणमावे किसतरह वह अपरिणामी वस्तु को ॥१२३॥ यदि स्वयं ही क्रोधादि में परिणमित हो यह आतमा । मिथ्या रही यह बात उसको परिणमावे कर्म जड़ ॥१२४॥ क्रोधोपयोगी क्रोध है मानोपयोगी मान है। मायोपयोगी माया है लोभोपयोगी लोभ है ॥१२५॥ .
SR No.009472
Book TitleSamaysara Anushilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1996
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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