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________________ समयसार अनुशीलन 306 जिसप्रकार किसी चांडालनी ने जुड़वा पुत्र पैदा किये। उनमें से एक पुत्र किसी ब्राह्मणी को गोद दे दिया और एक अपने ही घर पर रखा। ब्राह्मणी के घर पलने से जो पुत्र ब्राह्मण कहलाया, उसने मद्य-मांसादि अभक्ष्य पदार्थों का त्याग कर दिया और जो घर पर रहा, वह चांडाल कहलाया और उसने मद्यमांसादि पदार्थों का सेवन किया। इसीप्रकार एक वेदनीय कर्म के दो जुड़वां पुत्र हैं, जिनमें एक का नाम पाप है और दूसरे का नाम पुण्य है। दोनों में ही दौड़-धूप है, दोनों ही कर्मबंध रूप हैं; इसकारण ज्ञानी जीव दोनों में से किसी को भी नहीं चाहते। देखो, यहाँ पुण्य और पाप - दोनों को ही चांडालनी का पुत्र बताया है और यह भी कहा है कि ब्राह्मणत्व के अभिमान से शुभाचरण करने पर भी जैसे वह चांडालनी का पुत्र ब्राह्मण नहीं हो जाता, चांडाल ही रहता है; उसीप्रकार शुभभाव रूप होने से पुण्य धर्म नहीं हो जाता, कर्म ही रहता है; क्योंकि पुण्य और पाप कर्म के ही भेद हैं, धर्म के नहीं। . ___पुण्य और पाप की जाति एक है, तथापि आचरण के भेद से अज्ञानियों को जाति भेद का भ्रम हो जाता है और वे उन्हें भिन्न-भिन्न जाति का समझने लगते हैं। भ्रम के नाश होने पर ज्ञानज्योति प्रगट होती है और यह बात स्पष्ट हो जाती है कि पाप के समान ही पुण्य भी मुक्ति मार्ग में हेय ही है। • यद्यपि खोज की प्रक्रिया व खोज को भी व्यवहार से भेद-विज्ञान कहा जाता है, तथापि जिसे खोजना है, उसी में खो जाना ही वास्तविक भेदविज्ञान है अर्थात् निज-अभेद में खो जाना, समा जाना ही भेद-विज्ञान है। ___ भेद-विज्ञानी जीव की दृष्टि अविकृत होती है। वह आत्मा को रागीद्वेषी अनुभव नहीं करता और न ही वह आत्मा को सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि आदि भेदों में अनुभव करता है। अनुभव में अशुद्धता और भेद नजर नहीं आता। - तीर्थंकर महावीर और उनका सर्वोदय तीर्थ, पृष्ठ १२९
SR No.009472
Book TitleSamaysara Anushilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1996
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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