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________________ 277 गाथा १४४ ( रोला ) जो करता है वह केवल कर्ता ही होवे । जो जाने बस वह केवल ज्ञाता ही होवे ॥ जो करता वह नहीं जानता कुछ भी भाई। जो जाने वह करे नहीं कुछ भी हे भाई ॥९६॥ ____जो करता है, वह मात्र करता ही है और जो जानता है, वह मात्र जानता ही है। जो करता है, वह कभी जानता नहीं और जो जानता है, वह कभी करता नहीं। तात्पर्य यह है कि जो कर्ता है, वह ज्ञाता नहीं है और जो ज्ञाता है, वह कर्ता नहीं है। इस कलश का भाव स्पष्ट करते हुए कलश टीकाकार पाण्डे राजमलजी लिखते हैं - "भावार्थ इसप्रकार है कि सम्यक्त्व और मिथ्यात्व के परिणाम परस्पर विरुद्ध हैं। जिसप्रकार सूर्य का प्रकाश होने पर अन्धकार नहीं होता और अंधकार होने पर प्रकाश नहीं होता; उसीप्रकार सम्यक्त्व के परिणाम होने पर मिथ्यात्व परिणमन नहीं होता है। इसकारण एक काल में एक परिणामस्वरूप जीवद्रव्य परिणमता है; अतः उस परिणाम का कर्ता होता है। इसकारण मिथ्यादृष्टि जीव कर्म का कर्ता और सम्यग्दृष्टि जीव कर्म का अकर्ता - ऐसा सिद्धान्त सिद्ध हुआ।" ___ कलशटीका के इस कथन में ज्ञातृत्वभाव को सम्यक्त्व और कर्तृत्वभाव को मिथ्यात्व शब्द से अभिहित किया है तथा उन दोनों को परस्पर विरोधी परिणाम बताया है। इसी भाव को बनारसीदासजी इसप्रकार व्यक्त करते हैं - (चौपाई ) करै करम सोई करतारा, जो जाने सौ जाननहारा। जो करता नहिं जाने सोई, जाने सो करता नहीं होई ॥ जो कर्म करे, वह कर्ता है और जो जाने सो ज्ञाता है। जो कर्ता है, वह . ज्ञाता नहीं होता और जो ज्ञाता है, वह कर्ता नहीं होता।
SR No.009472
Book TitleSamaysara Anushilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1996
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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