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________________ समयसार अनुशीलन मंगलाचरण ( अडिल्ल छन्द ) समयसार का एकमात्र प्रतिपाद्य जो । आत्मख्याति का एकमात्र आराध्य जो ॥ अज अनादि अनिधन अविचल सद्भाव जो । त्रैकालिक ध्रुव सुखमय ज्ञायकभाव जो ॥ परमशुद्धनिश्चयनय का है ज्ञेय जो। सत्श्रद्धा का एकमात्र श्रद्धेय जो ॥ परमध्यान का ध्येय उसे ही ध्याउँ मैं । उसे प्राप्त कर उसमें ही रम जाउँ मैं ॥ समयसार अरु आत्मख्याति के भाव को । जो कुछ जैसा समझा है मैंने प्रभो ॥ उसी भाव को सहज सरल शैली विर्षे । विविध पक्ष से जन-जन के हित रख रहा ॥ इसमें भी है एक स्वार्थ मेरा प्रभो । नित प्रति ही चित रहा करे इसमें विभो ॥ मेरे मन का हो ऐसा ही परिणमन । मन का ही अनुकरण करें हित-मित वयन । अपनापन हो निज आतम में नित्य ही । अपना जानें निज आतम को नित्य ही ॥ रहे निरन्तर निज आतम में ही रमन । रहूँ निरन्तर निज आतम में ही मगन ॥ अन्य न कोई हो विकल्प हे आत्मन् । निज आतम का ज्ञान ध्यान चिन्तन मनन ॥ गहराई से होय निरन्तर अध्ययन । निश-दिन ही बस रहे निरन्तर एक धुन ॥
SR No.009471
Book TitleSamaysara Anushilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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